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________________ पड़ता नहीं। कुछ भी तो नहीं है आपके पास सिवाय लंगोटी के। बादशाह कैसे हो? तो राम ने कहा, यह लंगोटी थोड़ी-सी बाधा है मेरी बादशाहत में। इसलिए घोषणा जरा धीरे करता हूं। ऐसे अब मैं किसी चीज से बंधा हुआ नहीं हूं। बस, यह लंगोटी रह गई है। मैं बादशाह हूं! क्योंकि मुझे कोई भी जरूरत नहीं है। मेरी कोई मांग नहीं है। मेरी कोई चाह नहीं है। यह एक लंगोटी है, यह थोड़ा मुझे बांधे हुए है। और लंगोटी तो मुझे क्या बांधेगी, मैंने ही इसको बांधा हुआ है। इसलिए हम दोनों बंध गये हैं। लंगोटी मुझसे बंध गई है, मैं लंगोटी से बंध गया हूं। ___ निश्चित ही महावीर अपने को बादशाह कह सकते हैं। महावीर के बड़े भाई ने शायद सोचा होगा कि राज्य छोड़कर चला गया छोटा भाई। सोचा होगा, कैसा पागल है? बड़े के हाथ में सब राज्य दे गया, साम्राज्य दे गया और खुद नंगा होकर फकीर हो गया। नासमझ है। लेकिन बहुत कम लोग समझ पाये कि बादशाह हो गये महावीर, और बड़ा भाई गुलाम रह गया। बादशाहत इस बात से शुरू होती है कि मैं जो हूं उतना पर्याप्त हूं। इट इज़ एनफ टु बी वनसेल्फ। कोई कमी नहीं है जिसे मुझे पूरा करना पड़े। कोई कमी नहीं है जिसकी वजह से मैं खाली रहूं। कोई कमी नहीं है जिसके बिना मुझे लगे कि कुछ अधूरा है। बादशाहत एक इनर फुलफिलमेंट है, एक भीतरी आप्तता है। सब है, इसलिए कोई कमी नहीं है। लेकिन सम्राट के पास कुछ भी नहीं है। बहुत है उसके पास, जो दिखाई पड़ता है चारों तरफ, लेकिन वह खुद ही उसके पास नहीं है। और भीतर एक खालीपन है, भीतर एक एंप्टीनेस है, एक रिक्तता है। भीतर हम सब रिक्त हैं। इस रिक्तता को हम फर्नीचर से भरेंगे, इस रिक्तता को हम मकान से भरेंगे, इस रिक्तता को हम धन से भरेंगे। इस रिक्तता को हम यश, पद, प्रतिष्ठा से भरेंगे। फिर भी हम पायेंगे कि सारी पद-प्रतिष्ठाएं इकट्ठी हो गई हैं; सारा धन का ढेर लग गया है, और भीतर की रिक्तता अपनी जगह खड़ी है। बल्कि पहले इतनी दिखाई नहीं पड़ती थी जितनी अब दिखाई पड़ती है, क्योंकि कंट्रास्ट है-बाहर धन के ढेर लग गये हैं तो भीतर की रिक्तता और प्रगाढ़ होकर दिखाई पड़ने लगती है। गरीब आदमी को अपनी गरीबी उतनी साफ कभी नहीं दिखाई पड़ती जितनी अमीर आदमी को अपनी गरीबी दिखाई पड़नी शुरू हो जाती है। मेरी दृष्टि में तो अमीरी का एक ही लाभ है कि उससे गरीबी दिखाई पड़ती है। इसलिए मैं सदा अमीरी के पक्ष में रहता हूं। क्योंकि उसके बिना गरीबी कभी दिखाई नहीं पड़ सकती। काले तख्ने पर जैसे सफेद रेखाएं उभर कर दिखाई पड़ने लगती हैं, ऐसे बाहर इकट्टे हो गये धन में भीतर की निर्धनता प्रगाढ़ होकर दिखाई पड़ने लगती है। सब होता है बाहर और भीतर कुछ भी नहीं होता है। वह जो भीतर की रिक्तता है, उसी को भरने के लिए परिग्रह है। लेकिन कोई सोच सकता है कि बाहर की चीजें छोड़ दें तो क्या भीतर की रिक्तता मिट जायेगी? यही असली सवाल है, क्या हम बाहर की चीजें छोड़ कर भाग जायें तो भीतर की रिक्तता मिट जायेगी? अपरिग्रह 31 www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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