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दिन आप आनंदित होंगे, उस दिन भोजन ज्यादा नहीं कर पायेंगे। अगर कोई प्रियजन घर में
आ जाये और आप बहुत आनंदित हों तो भोजन कम हो जायेगा। आनंद इतना भर देता है, इट इज़ सो फुलफिलिंग, कि भीतर कुछ खाली नहीं रह जाता जिसमें भोजन डालो। महावीर ने जिस आनंद को जाना है वह तो परम आनंद है, वह इतना भर देता है, इतना भर देता है भीतर, कि जगह खाली नहीं रह जाती।
दुखी आदमी ज्यादा खाना खाते हैं। ध्यान रहे जिस दिन आप दुख में होंगे उस दिन आप ज्यादा खाना खा जायेंगे, क्योंकि आप इतने खाली होंगे। तो जो आदमी जितना दुखी है, उतना ज्यादा खाना खाने लगेगा। __ असल में बचपन में बच्चे को पहली दफे ही यह बोध हो जाता है कि सुख और खाने में कोई संबंध है। मां जब बच्चे को पूरा प्रेम करती है तो दूध भी देती है और उस प्रेम में उसे आनंद भी मिलता है। जिस बच्चे को पक्का आश्वासन है कि जब उसे दूध चाहिए मिल जायेगा, वह बच्चा ज्यादा दूध नहीं पीता। मां परेशान रहती है कि ज्यादा पिलाये। वह ज्यादा नहीं पीता, क्योंकि वह जानता है, जब भी चाहिए तब मिल जायेगा। लेकिन अगर नर्स हो दूध पिलाने वाली...और कई माताएं सिर्फ नर्सेस हैं, उन्होंने बच्चे को पेट में लिया, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता! अगर मां इससे दुखी होती और बच्चे को जबर्दस्ती दूध से अलग करती है तो बच्चा ज्यादा पीने लगेगा, क्योंकि भविष्य का भरोसा नहीं है। बच्चा चिंतित है, एंग्जाइटी से भरा हुआ है। इसलिए जहां जितनी ज्यादा चिंता होगी वहां उतना ही भोजन ज्यादा शुरू हो जायेगा। चिंतित लोग ज्यादा खाना खाने लगते हैं। ___ चिंतित लोग खाली हो जाते हैं। चिंता एक तरह की एंप्टीनेस है। वह भीतर सब खाली कर देती है। आदमी ज्यादा खाने लगता है। ज्यादा खाना सिर्फ इस बात की सूचना है कि यह आदमी दुखी है। कम खाना सिर्फ इस बात की सूचना है कि यह आदमी सुखी है। __ आनंद तो और आगे की बात है। जब कोई आनंद से भर जाता है तो महीनों भी बीत सकते हैं। और ध्यान रहे, महावीर के महीनों उपवास में बीते। महीनों उन्होंने भोजन नहीं किया, ऐसा नहीं कहूंगा–भोजन नहीं कर पाये, ऐसा कहूंगा। ऐसे भरे हुए थे। लेकिन महीना इतने आनंद से बीता हो तो भी महावीर के शरीर पर तो नुकसान होना ही चाहिए भोजन के न होने का। यह बड़े मजे की बात है कि शरीर को नुकसान जितना भोजन के न होने से पहुंचता है, उतना भोजन नहीं मिला इससे पहुंचता है। भोजन के न होने से इतना नुकसान नहीं पहुंचता, जितना नहीं मिला इससे पहुंचता है। गहरे में शरीर को जो नुकसान पहुंचते हैं वह मनोदशाओं से पहुंचते हैं। ___अभी यूरोप में एक महिला थी...और कुछ दिनों पहले बंगाल में एक महिला थी। बंगाल में प्यारी बाई नाम की एक महिला थी, जिसने तीस साल, पूरे तीस साल भोजन नहीं किया और शरीर को कोई नुकसान ही नहीं पहुंचा। और यह महावीर की बात तो पुरानी हो गयी, इसलिए इसकी मेडिकल परीक्षा का कोई उपाय नहीं है। लेकिन इस प्यारी बाई के सारे के सारे मेडिकल परीक्षण हुए। तीस साल उसने कोई भोजन नहीं किया। उसके पेट में एक
अहिंसा
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