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दाना नहीं गया। उसकी सारी अंतड़ियां सिकुड़ कर सूख गयीं। लेकिन उसके स्वास्थ्य में कोई फर्क नहीं पहुंचा। क्या हुआ? एक मिरैकल हुआ? एक चमत्कार हुआ! इसे क्या हो गया? मेडिकल साइंस को समझाना मुश्किल हो गया कि इसे क्या हुआ।
असल में वह इतनी आनंदित थी कि हम सोच भी नहीं सकते कि आनंद भी भोजन बन सकता है। हम सिर्फ एक ही बात जानते हैं कि भोजन आनंद बनता है। दूसरा छोर हमें पता नहीं कि आनंद भी भोजन बन सकता है। हम सिर्फ एक छोर जानते हैं कि भोजन आनंद बनता है, दूसरा छोर भी है। सब चीजें कनवर्टीबल हैं। अगर पानी बरफ बन सकता है तो बरफ पानी बन सकता है। अगर एनर्जी मैटर बन सकती है तो मैटर एनर्जी बन सकता है। अगर भोजन आनंद बनता है तो आनंद भोजन बन सकता है। बना है! प्यारी बाई तीस साल तक भूखे रह कर कह गयी कि भूखे महावीर ने अगर बारह साल में कुल तीन सौ पैंसठ दिन भोजन किया होगा तो यह अनशन नहीं था, अन्यथा शरीर चला गया होता। आनंद भोजन बन गया। ____ अभी यूरोप में एक महिला थी। उस पर तो और भी प्रयोग हो सके। वह परम स्वस्थ थी, असाधारण रूप से स्वस्थ थी। और वर्षों उसने भोजन नहीं किया। क्या हुआ? वह कृष्ण की दीवानी नहीं थी। यह प्यारी बाई कृष्ण की दीवानी थी, वह क्राइस्ट की दीवानी थी। और प्यारी बाई से भी ज्यादा महत्वपूर्ण घटना उसकी जिंदगी में थी। क्योंकि हर शुक्रवार को, जब क्राइस्ट को सूली लगी, तब उसके दोनों हाथों से खून बहने लगता था, बिना किसी चोट पहुंचाये। इतनी एक हो गयी थी एम्पैथी में कि वह ऐसा नहीं बोलती थी कि जीसस ने कहा, वह ऐसा ही बोलती थी कि मैंने कहा था जब मुझे सूली लगी थी तो मैंने कहा था, इन सबको माफ कर दो, क्योंकि ये निर्दोष हैं और नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं। तो ठीक शुक्रवार के दिन, जिस दिन जीसस को सूली लगी, उसके हाथ फैल जाते, आंखें बंद हो जातीं और उसके हाथ की साबित गद्दियों में से खून गिरना शुरू हो जाता। स्टिगमैटा शुरू हो जाता। शुक्रवार की रात घाव विदा हो जाते। खून बंद हो जाता। दूसरे दिन हाथ बिलकुल ठीक हो जाते। और सैकड़ों बार उसके हाथ से खून बहा, और भोजन उसका बंद! और तब तो बड़ी मुश्किल हो गयी, उसका वजन कम न हो! तो क्या हुआ? ___ एक बहुत कीमती बात आपसे कहना चाहता हूं। वह यह कि कुछ सूत्र हैं, कुछ राज हैं, जिनके द्वारा आनंद भी भोजन बन जाता है। लेकिन वह उपवास है, वह अनशन नहीं है।
अहिंसा न तो किसी और को सताती, न स्वयं को सताती। अहिंसा सताती ही नहीं। हिंसा ही सताती है। हिंसा के गृहस्थ रूप हैं, हिंसा के संन्यस्त रूप हैं; हिंसा के अच्छे रूप हैं, बुरे रूप हैं। और अगर दोनों से हम सजग हो जायें तो शायद अहिंसा की खोज हो सकती है।
चार दिन तक एक-एक सूत्र की खोज आपके साथ करना चाहूंगा और पांचवें दिन, अंतिम दिन इन चारों सूत्रों में कैसे उतरा जा सकता है, उसकी बात करूंगा।
अहिंसा, अपरिग्रह, अचौर्य, अकाम, ये चार परिणाम हैं और पांचवां सूत्र अप्रमाद,
ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
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