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हुआ है कि ऋषि-मुनियों से ज्यादा क्रोधी आदमी को खोजना कठिन हो जाता है। दुर्वासा ऋषि-मुनि में ही पैदा हो सकते हैं। कहीं और नहीं पैदा हो सकते हैं। __इधर मैं निरंतर सोचता रहा तो मेरे खयाल में आया कि अगर हिटलर थोड़ी सिगरेट पीता, थोड़ा मांस खा लेता, थोड़ा बे-वक्त जग जाता, थोड़ा जाकर कहीं नृत्यगृह में नाच कर लेता, तो शायद दुनिया में करोड़ों आदमी मरने से बच सकते थे। लेकिन हिटलर सिगरेट नहीं पीता, मांस नहीं खाता, चाय नहीं पीता। पक्का शाकाहारी, प्युरिटन, शुद्धतावादी; नियम से सोता, नियम से उठता ब्रह्ममुहूर्त में। सख्त नीतिवादी आदमी है, चारों तरफ से सख्त है। सारी शक्ति इकट्ठी हो गयी है।
कई बार ऐसा लगता है कि थोड़े अच्छे आदमी भी थोड़े से, जिसको इनोसेंट नॉनसेंस कहें, निर्दोष बेवकूफियां कहें, ऐसे थोड़े-से काम करें, तो विनम्र और सरल हो जाते हैं। लेकिन अच्छे आदमी सदा ही अच्छा करने की इतनी चेष्टा करते हैं! अच्छा होना बहुत दूसरी बात है, अच्छा करना बहुत दूसरी बात है। अच्छा करने से कोई कभी अच्छा नहीं होता। अच्छा होने से अच्छा करना निकल सकता है। वह बहुत दूसरी बात है। लेकिन हम सदा उल्टा पकड़ते हैं। __ हमने देखा महावीर को कि महावीर मांस नहीं खाते, तो हमने सोचा हम भी मांस न खायेंगे तो महावीर जैसे अच्छे हो जायेंगे। भूल हो गयी, तर्क गलत हो गया, कहीं गणित चूक गया। महावीर कुछ हो गये हैं, इसलिए मांस खाना असंभव है। मांस न खाने से कोई महावीर नहीं हो सकता। और अगर मांस न खाने से कोई महावीर हो सके तो महावीर होना दो कौड़ी का हो गया। जितनी कीमत मांस की, उतनी ही कीमत महावीर की हो गयी। उससे ज्यादा न रही। इतना सस्ता मामला नहीं है। धर्म इतना सस्ता नहीं है कि हम यह न खायेंगे तो हम धार्मिक हो जायेंगे; कि हम यह न पीयेंगे तो हम धार्मिक हो जायेंगे; कि हम रात में पानी न पीयेंगे तो धार्मिक हो जायेंगे। ___ मैं नहीं कहता हूं कि आप पीयें। ध्यान रहे, मैं यह नहीं कह रहा हूं कि रात में पानी पीयें। पीने से भी धार्मिक नहीं हो जायेंगे। नहीं पीते हैं, भला है; लेकिन इस भूल में न पड़ जाना कि धार्मिक हो गये, अहिंसक हो गये। वह बड़ा खतरा है, बहुत सस्ता काम किया और बहुत महंगा विश्वास पैदा हो गया। ना कुछ किया और सब कुछ पाने का खयाल हो गया। कंकरपत्थर बीने और समझा कि हीरे-जवाहरात हाथ आ गये। यह भूल हो गयी, अहिंसा के साथ यह भूल बहुत गहरी हो गयी है। क्योंकि अहिंसा को हमने पकड़ा है आचरण से, गहरे से नहीं, अध्यात्म से नहीं। आचरण से अहिंसा पकड़ी जायेगी तो खतरनाक है। और जब आचरण से कोई अहिंसा को पकड़ता है, तब सूक्ष्म रूप से हिंसक होता चला जाता है। ___ इस संबंध में एक बात और फिर मैं अपनी बात पूरी करूं। जब हिंसा सूक्ष्म बनती है तो पहचान के बाहर हो जाती है। मैं आपको कई तरह से दबा सकता हूं। एक दबाना हिटलर का भी है-आपकी छाती पर छुरी रख देगा। एक दबाना महात्मा का भी होता है-आपकी छाती पर छुरी नहीं रखेगा, अपनी छाती पर छुरी रख लेगा। एक दबाना मेरा यह हो सकता
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ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
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