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ध्यान रहे भगवान की मूर्ति पर चढ़ाये गये फूल भी हिंसा हो जाती है। क्योंकि हम दूसरे को स्वीकार कर रहे हैं। भक्त वह नहीं है जिसने भगवान की मूर्ति पर फूल चढ़ाये। भक्त वह है जो खोजने निकला और जिसने भगवान के सिवाय कुछ भी न पाया। फूल में भी उसे पाया,
और पत्थर में भी उसे पाया। चढ़ाने वाले में भी उसे पाया, चढ़ने वाले में भी उसे पाया। और वह पूछने लगा कि किस पर चढ़ाऊं और किसको चढ़ाऊं? और किसके लिए चढ़ाऊं? और कैसे चढ़ाऊं? और कौन चढ़ाये?
जब कोई अहिंसा को उपलब्ध होता है तो दूसरा मिट जाता है। और दूसरा कब मिटता है? जब कोई स्वयं को जानता है तब दूसरा मिटता है, उसके पहले नहीं मिटता। फिर हमारी बहुत तरह की हिंसाएं पैदा होती चली जाती हैं। हम चलते हैं तो हिंसा है, हम उठते हैं तो हिंसा है, हम बैठते हैं तो हिंसा है, हम बोलते हैं तो हिंसा है, हम देखते हैं तो हिंसा है।
इसलिए इस खयाल में कोई न पड़े कि अगर हमने बहुत स्थूल हिंसाएं रोक लीं तो कोई फर्क हो जायेगा। कोई आदमी मांसाहार न करे, अच्छा है न करे, लेकिन इस भ्रम में न पड़े, वह बहुत बुरा है कि अहिंसा हो गयी। इतना ही कहे कि थोड़ी-सी हिंसा रुकी। लेकिन ध्यान रहे, यह हिंसा किसी दूसरी जगह से निकलना शुरू न हो जाये।
यह निकलेगी, यह मार्ग खोजेगी। क्योंकि हिंसा मिटी नहीं है, वह मिट नहीं सकती, इस भांति नहीं मिट सकती। अगर मांस खाना छोड़ दिया है तो अक्सर आप देखेंगे कि मांसाहारी जितना भला आदमी मालम पड़ेगा, गैर-मांसाहारी उतना भला आदमी नहीं मालूम पड़ेगा। यह बड़ी अजीब-सी बात है, बड़ी दुखद है, लेकिन है। साधारणतः जो शराब पी लेता है, सिगरेट पी लेता है, होटल में खाना खा लेता है, वह थोड़ा-सा विनम्र आदमी मालूम पड़ेगा। जो सिगरेट नहीं पीता, मांस नहीं खाता, होटल में नहीं खाता, ऐसा जीता है, ऐसा नहीं जीता, वह अविनम्र और कठोर होता चला जायेगा।
जो हिंसा उसकी निकलती नहीं है वह इकट्ठी होकर उसके भीतर संगृहीत होनी शुरू हो जाती है। इसलिए आमतौर से जिनको हम अच्छे आदमी कहते हैं, वे अच्छे सिद्ध नहीं होते। दुर्घटना है यह। बुरा आदमी कई बार बहुत अच्छा सिद्ध होता है, और अच्छे आदमी अक्सर बुरे सिद्ध होते हैं। अच्छे आदमी के साथ दोस्ती तो मुश्किल ही है, बुरे आदमी के साथ ही दोस्ती हो सकती है। और दोस्ती के लिए भी थोड़ा-सा विनम्र दिल चाहिए, अच्छे आदमी के पास वह नहीं रह जाता। इसलिए महात्माओं से दोस्ती बहुत मुश्किल है। दो महात्माओं की भी मुश्किल है, औरों की तो मुश्किल ही है। ___ आप महात्मा के अनुयायी हो सकते हैं या दुश्मन हो सकते हैं, दोस्त नहीं हो सकते। अच्छे आदमी के पास दोस्ती खो जाती है, कठोर हो जाता है। हाथ फैलाता है जो वह दोस्ती के लिए, वह खत्म हो जाता है। अक्सर जो समाज, जिसको हम कहें कि सहज जीते हैं, बुरेभले का बहुत फर्क नहीं करते, वहां बड़ी मात्रा में भले लोग मिल जाते हैं। जो समाज असहज जीते हैं, बुरे-भले का बहुत फर्क करते हैं, वहां अच्छा आदमी खोजना मुश्किल हो जाता है। क्योंकि बुराई बाहर से तो रुक जाती है और भीतर इकट्ठी हो जाती है। इसलिए अक्सर ऐसा
अहिंसा
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