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________________ घटित होती हैं बिना उसकी इच्छा अथवा चुनाव के। तो कृपया बताइए कि सोए हुए कर्ता, और जागे हुए कर्ता में क्या अंतर है? गुरजिएफ कहते हैं कि जागा हुआ आदमी क्रिस्टलाइज्ड हो जाता है, इसका क्या अर्थ है? और क्या जागे हुए आदमी का अहंकार क्रिस्टलाइज होने के बदले विसर्जित नहीं हो जाता है? सोया हुआ आदमी करता नहीं है, उस पर भी चीजें होती हैं। लेकिन सोया हुआ आदमी समझता है कि मैं कर रहा हूं। सोया हुआ आदमी भी करता नहीं है, समझता है कि करता हूं। जागा हुआ आदमी भी करता नहीं है, लेकिन समझता है कि करता नहीं हूं। बस इतना ही फर्क पड़ता है। सोया हुआ आदमी सोचता है, मैं करता हूं। करता कुछ भी नहीं है, होता है। जागा हुआ आदमी भी कुछ नहीं करता है, सब होता है, लेकिन जागा हुआ आदमी यह जानता है, सब होता है, मैं करता नहीं हूं। सोए हुए और जागे हुए आदमी के करने में फर्क नहीं है, जानने में फर्क है। उनके कृत्य में फर्क नहीं है, उनके कर्तृत्व के बोध में फर्क है। बुद्ध भी चलते हैं, अबुद्ध भी चलते हैं। होश से भरा हुआ आदमी भी चलता है, गैर होश से भरा हुआ आदमी भी चलता है। गैर होश से भरा हुआ आदमी चलता है मैं के केंद्र पर-मैं हूं। होश से भरा हुआ चलता है शून्य के केंद्र पर-मैं नहीं हूं, वह चलने की क्रिया है। साथ ही आपने पूछा है कि जॉर्ज गुरजिएफ कहता था कि जागा हुआ आदमी क्रिस्टलाइज्ड हो जाता है। उसके भीतर इंडिविजुएशन, व्यक्ति पैदा हो जाता है। जुंग भी इंडिविजुएशन की यही बात कहता है जो गुरजिएफ कहते हैं, कि जितना आदमी जागता है भीतर, उसका व्यक्ति उतना मजबूत हो जाता है। इससे यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या जागे हुए आदमी का व्यक्ति मजबूत होता है, या समाप्त होता है? अहंकार बनता है या विसर्जित होता है? ___भाषा के भेद हैं और कुछ भेद नहीं। गुरजिएफ जिसे क्रिस्टलाइजेशन कहता है, गुरजिएफ जिसे व्यक्ति का पैदा होना कहता है, उसे ही मैं शून्य का पैदा होना कह रहा हूं। असल में शून्य होकर ही व्यक्ति पहली दफा पैदा होता है। क्योंकि शून्य होकर ही पहली दफा विराट जीवन का व्यक्तित्व उसे मिलता है। शून्य होकर ही, मिटकर ही, पहली दफा व्यक्ति व्यक्ति होता है। लेकिन यह कठिन होगा। यह उन विरोधों में से एक है जो धर्म रोज बोलते हैं और हम समझ नहीं पाते। जैसे कि बूंद सागर में गिर जाती है तो कोई कह सकता है कि बूंद खो गई, अब कहां है? बूंद मिट गई! और कोई यह भी कह सकता है कि बूंद सागर हो गई, अभी तक कहां थी, अब पहली दफा हुई है। अभी तक बूंद ही थी, क्या था, कुछ भी न था, अब सागर हो गई है। ये दोनों बातें कही जा सकती हैं। कोई कह सकता है कि बूंद खो गई, अब नहीं है, शून्य हो गई। कोई कह सकता है कि बूंद सागर हो गई। अब है, पहले क्या थी, न कुछ थी, अब पहली दफा सागर हुई है। यह निगेटिव और पॉजिटिव के बोलने के फर्क हैं। अप्रमाद (प्रश्नोत्तर) 303 www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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