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पत्थर डाल जाये, और दोनों बातें एक-सी स्वीकृत हो जायें, भेद ही न हो, तो तथाता है। अगर जरा सा भी भेद हो जाये तो तथाता चूक गई।
तथाता का अर्थ है, इस जगत में जो हो रहा है, उसमें मेरे मन में उससे अन्यथा हो, अदरवाइज हो, ऐसी कोई आकांक्षा नहीं। सागर में लहरें उठ रही हैं। हवाओं में तूफान आ रहे हैं। वृक्षों पर फूल लग रहे हैं। आकाश में तारे चल रहे हैं। कोई आदमी गालियां दे रहा है। कोई आदमी गीत गा रहा है। यह जो सारा का सारा विराट है, अंतहीन है, यह सारा अंतहीन विराट जैसा है, ऐसा का ऐसा, मैं राजी हूं, तो तथाता है। तथाता साधक की तीसरी बात है। ___ अप्रमाद की साधना में साक्षी से शुरू करें और तथाता पर पूर्ण करें। शुरू करें तीसरे कोण पर खड़े होने से, फिर जागें, सजग हों, और फिर स्वीकार को उपलब्ध हो जायें। पहले कर्ता से तोड़ें अपने द्रष्टा को। फिर अपने कर्म से जोड़ें अपने ज्ञान को। और फिर समस्त से जोड़ें अपनी स्वीकृति को। इन तीन चरणों में अप्रमाद धीरे-धीरे गहरा होता चला जाता है।
और जिस दिन पूर्ण अप्रमाद, पूरा जागा हुआ मन होता है, किन शब्दों में कहा जाये कि उस दिन क्या होता है!
तथाता का एक खयाल और मुझे आया वह आपसे मैं कहूं। एक झेन फकीर ने एक छोटा-सा गीत लिखा है। उस गीत में लिखा है कि आकाश में हंस उड़ते हैं। उनकी कोई इच्छा नहीं होती कि नीचे की शांत झील में उनका प्रतिबिंब बने। लेकिन प्रतिबिंब बन जाता है। नीचे की नीली झील पर से ऊपर जब हंस उड़कर निकलते हैं, झील की कोई इच्छा नहीं होती कि हंसों का प्रतिबिंब पकड़े, लेकिन प्रतिबिंब पकड़ लिये जाते हैं। फिर हंस उड़ जाते हैं और प्रतिबिंब भी उड़ जाते हैं। न हंसों को पता चलता है कि झील में प्रतिबिंब पकड़े गए थे, न झील को पता चलता है कि हंसों के प्रतिबिंब उसकी छाती में कुछ कुतूहल, कुछ हलचल, कुछ उपद्रव पैदा किये हैं। तथाता का अर्थ है ऐसा व्यक्तित्व। चीजें हो जाती हैं। सब के लिए राजी है। कुछ करना भी नहीं चाहता, कोई शिकायत भी नहीं है।
इसलिए बुद्ध का एक नाम तथागत है। बुद्ध को उस नाम से बहुत प्रेम था। खुद भी वह कहते थे. तो कहते थे कि तथागत एक गांव से गजरे। तथागत का मतलब है तथाता को उपलब्ध। तथागत का मतलब है, दस केम, दस गान। जैसे हंस आए झील पर और गए, ऐसा ही जो आया और गया। न कोई चाह थी कि यहां कुछ कर जाये, न कोई चाह थी कि यहां जो हो रहा है, उससे अन्यथा हो जाये। जो हुआ, हुआ। जो नहीं हुआ, नहीं हुआ। कोई हिसाब न रखा, कोई किताब न रखी। कोई आशा न रखी, कोई निराशा न बनायी। कोई सफलता न चाही, किसी असफलता को ग्रहण न किया। कोई जीत न मानी, किसी हार का कारण न बनाया। ऐसा जो आया हंस की तरह, पानी पर बने बिंब, और मिट गए।
जापान में तो झेन फकीर कहते हैं कि बुद्ध कभी हुए ही नहीं। मजाक करते हैं गहरी, और सिर्फ गहरे फकीर ही गहरी मजाक कर सकते हैं। जापान का रिझाई कहा करता था कि बुद्ध कभी हुए नहीं, कहां की कहानियां कहते हो! और रोज बुद्ध की प्रार्थना करता सुबह,
अप्रमाद (प्रश्नोत्तर) 301
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