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हम कभी स्वीकार कर भी लें, लेकिन तेरे जगत को स्वीकार नहीं कर पाते। कोई है जो जगत को स्वीकार कर लेता है, लेकिन ईश्वर को स्वीकार नहीं कर पाता है। सुख को तो हम सभी स्वीकार कर लेते हैं, दुख को कौन स्वीकार कर पाता है! और दुख तब तक रहेगा जब तक स्वीकृत न हो जाये। शायद इस जीवन के आध्यात्मिक विकास में दुख का यही मूल्य है। जीवन की इस योजना में दुख की यही सार्थकता है कि जिस दिन दुख भी स्वीकृत होता है, उसी दिन जीवन में परम आनंद की वर्षा हो जाती है। फूल तो कोई भी स्वीकार कर लेता है, सवाल तो कांटों को स्वीकार करने का है। जीवन तो कोई भी स्वीकार कर लेता है, आलिंगन कर लेता है, सवाल तो मृत्यु को आलिंगन करने का है।
तथाता का अर्थ है : सब, द टोटल, उसमें इंच भर भी हम कुछ निकाल नहीं देना चाहते, सब पूरे की स्वीकृति। ऐसी स्वीकृति पूरी सजगता में ही हो सकती है। ऐसी स्वीकृति साक्षी के बाद ही हो सकती है। ऐसी स्वीकृति जब किसी के प्राणों में बस जाती है तो उसके प्राणों में अनंत आनंद का नृत्य शुरू हो जाता है। उसके जीवन में बांसुरी बजने लगती है उस संगीत की, जो शून्य है। उसके जीवन में वह वीणा बजने लगती है, जिस पर कोई तार नहीं है। उसके जीवन में वह नृत्य आ जाता है, जिसके लिए कोई ताल नहीं है। उसके जीवन में ऐसी सुगंध फूटने लगती है, जिसमें कोई फूल नहीं है पीछे।
लेकिन तथाता बहुत कठिन है। तथाता का भाव ही बहुत कठिन है। उससे बड़ी आईअस उससे ज्यादा कठिन और कोई बात नहीं है। उसका मतलब है, जो भी आ जाये...।
एक भिक्षु एक वृक्ष के नीचे से गुजर रहा है। एक आदमी उसे लकड़ी मार गया है। घबड़ाहट में लकड़ी मारी तो लकड़ी हाथ से छूट गई और गिर पड़ी। वह भिक्षु लौटा। उसने लकड़ी उठायी। वह आदमी तो घबड़ाहट में भाग ही गया मारकर। पास की दुकान पर जाकर उस भिक्षु ने कहा, यह लकड़ी रख लेना, शायद वह बेचारा वापस लौटकर लकड़ी खोजने आये। उस दुकान के मालिक ने कहा, आप आदमी कैसे हैं! उसने लकड़ी मारी है।
उस भिक्षु ने कहा, एक बार एक वृक्ष के नीचे से मैं गुजरता था, तब वृक्ष से एक शाखा मेरे ऊपर गिर पड़ी। जब मैंने वृक्ष को स्वीकार कर लिया, तो यह आदमी वृक्ष से तो कम से कम अच्छा ही होगा।
ऐसा समझें कि नदी में आप एक नाव चला रहे हैं। एक खाली नाव दूसरी तरफ से आकर आपकी नाव से टकरा जाये. आपकछ भी न कहेंगे। कुछ भी न कहेंगे, आप स्वीकार कर लेंगे और आगे बढ़ जाएंगे। लेकिन भूल से अगर उस नाव में एक आदमी बैठा हो, तब कलह हो जाएगी। नाव को माफ कर सके, लेकिन आदमी को माफ न कर सकेंगे। नाव को इसलिए माफ कर सके, कि स्वीकार कर सके, क्योंकि अस्वीकार करने का उपाय नहीं है। आदमी को माफ नहीं कर सके, क्योंकि उसे स्वीकार करना मुश्किल पड़ा।
लेकिन तथाता का अर्थ है कि नाव खाली टकराये, कि नाव में आदमी बैठा हो तो टकराये, आपके मन में दोनों बातें एक सी हों तो तथाता है। अगर जरा सा भी फर्क पड़ जाये तो तथाता चूक गई। एक आदमी आपके ऊपर फूल फेंक जाये और एक आदमी आपके ऊपर
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ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
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