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मैंने होशपूर्वक उठाया है। एक शब्द भी बोला है, तो वह मैं होशपूर्वक बोला हूं। मैंने हां कही है, तो मेरा मतलब हां है। मैंने होशपूर्वक कही है। और मैंने नहीं कही है, तो मेरा मतलब नहीं है। और मैंने होशपूर्वक कही है।
एक-एक कृत्य होश से भर जाये तो जीवन में जो व्यर्थ है, वह तत्काल बंद हो जाता है, क्योंकि होशपूर्वक कोई भी व्यर्थ कुछ नहीं कर सकता। और जीवन में जो अशुभ है, वह तत्काल क्षीण होने लगता है। क्योंकि होशपूर्वक कोई अशुभ नहीं कर सकता। जीवन में बहुत-सा जाल, व्यर्थ का जाल, जो हम मकड़ी की तरह गूंथते चले जाते हैं और आखिर में खुद ही उसमें फंस जाते हैं, और निकल नहीं पाते हैं, वह एकदम टूट जाता है।
हम सभी गूंथ रहे हैं। एक झूठ आप बोल देते हैं, फिर जिंदगी भर उस झूठ को संभालने के लिए आप दूसरे झूठ बोले चले जाते हैं। फिर आपको पता ही नहीं रहता कि पहला झूठ आप कब बोले थे। वह इतने पीछे दब जाता है कि आपको भी सच मालूम होने लगता है। क्योंकि आप इतनी बार बोल चुके और इतनी बार सुन चुके अपने ही मुंह से कि दूसरे भला भरोसा न करें, लेकिन आप तो भरोसा कर ही लेते हैं। फिर एक जाल फैलता चला जाता है जिसमें हम रोज ऐसे कदम उठाये चले जाते हैं जो हमने कभी उठाने नहीं चाहे थे। ऐसे रास्तों पर चले जाते हैं जिन पर हम जाना न चाहते थे। ऐसे संबंध बना लेते हैं जो हम बनाना न चाहते थे। ऐसे काम कर लेते हैं जिनके लिए हमने कभी कामना न की थी। और तब सारी जिंदगी एक विक्षिप्तता बन जाती है।
__ सजगता का अर्थ है, जो भी मैं कर रहा हूं, करते समय पूरा होश, पूरी अवेयरनेस है। इसका भी थोड़ा प्रयोग करें तो उससे भीतर अपूर्व शांति उतरनी शुरू हो जाती है।
तीसरी बात–तथाता-और भी कठिन है। सजगता को कोई साधे तो ही तथाता को साध सकता है। तथाता का मतलब है, सचनेस, चीजें ऐसी हैं। तथाता का अर्थ है, परम स्वीकृति। तथाता का अर्थ है, कोई शिकायत नहीं। तथाता का अर्थ है, जो भी है, है; और मैं राजी हूं। साक्षी में हम द्रष्टा हैं, जो हो रहा है। हो सकता है, हम राजी न हों। सजगता में हम जाग गए हैं। जो नहीं होना चाहिए वह धीरे-धीरे गिर जायेगा, जो होना चाहिए वही बचेगा। तथाता में जो भी है, हम उसके लिए राजी हैं। दुख है, मृत्यु है, प्रिय का मिलन है, बिछोह है, जो भी है, उसके लिए हम पूरे के पूरे राजी हैं। हमारे प्राणों के किसी कोने से कोई शिकायत, कोई इनकार, कुछ भी नहीं है।
तथाता परम आस्तिकता है। वह आदमी आस्तिक नहीं है, जो कहता है कि मैं ईश्वर को मानता हूं। वह आदमी आस्तिक नहीं है, जो कहता है कि मैं भरोसा करता हूं, विश्वास करता हूं। आस्तिक वह आदमी है जो शिकायत नहीं करता। जो कहता है, जो भी है, ठीक है। कहीं भी, प्राणों के किसी कोने में मेरा कोई भी विरोध नहीं है। मैं राजी हूं। उसकी श्वासश्वास राजीपन की श्वास है। वह टोटल एक्सेप्टिबिलिटी उसके हृदय की धड़कन-धड़कन है। जो भी है, यह जगत जैसा भी है...।
आस्तिक भी ऐसा नहीं मानता था। वोल्तेयर ने कहीं लिखा है कि हे परमात्मा, तुझे तो
अप्रमाद (प्रश्नोत्तर) 299
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