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________________ लड़ रहा है। लड़ानेवाला मैं रहा। कृष्ण उसे कह सकते हैं कि तू मार, तू फिक्र ही क्यों करता है कि तू मार रहा है। क्योंकि जिनको तू सोच रहा है कि तू मार रहा है, वह पहले ही मारे जा चुके हैं। वह अर्जुन की समझ में नहीं आता। क्योंकि वह अपने को कर्ता समझे बैठा है। वह कहता है कि मैं कैसे अपने प्रियजनों को मार डालूं? ये मेरे हैं। नहीं, नहीं, इनको मैं कैसे मार सकता हूं। उसकी चिंता कर्ता की चिंता है। अगर गीता के राज को समझना हो तो गीता का राज दो शब्दों में है। अर्जुन को कर्ता होने का भ्रम है और कृष्ण पूरे समय साक्षी होने के लिए समझा रहे हैं। इससे ज्यादा गीता में कुछ भी नहीं है। वह कृष्ण कह रहे हैं, तू सिर्फ देखनेवाला है, द्रष्टा है, करनेवाला नहीं है। यह सब पहले ही हो चुका है। यह सिर्फ कहने का ढंग है कि पहले ही हो चुका है। वह सिर्फ यह कह रहे हैं कि तू करने वाला है, इतनी बात भर तू छोड़ दे। इतनी बात भर तुझे भटका देगी और वंचना में डाल देगी। इतनी बात तुझे चिंता में डाल रही है, मोह में डाल रही है। साक्षी, साधक के लिए पहला कदम है। यह सरलतम है। ऐसे सरलतम नहीं है, और जो आगे के कदम हैं, उनकी दृष्टि से सरल है। जो हम करने जा रहे हैं, उस दृष्टि से तो वह बहुत कठिन है। लेकिन थोड़ा प्रयोग करें तो इतना कठिन नहीं है। नदी में तैरते हुए कभी देखें जरा कि आप देख रहे हैं कि तैर रहे हैं। रास्ते पर चलते वक्त देखें कि आप देख रहे हैं कि चल रहे हैं। __ कठिन नहीं है। कभी-कभी उसकी झलक आने लगेगी। और जैसे ही तीसरे कोण की झलक आएगी, आप अचानक पाएंगे कि पूरी दुनिया बदल गई। सब-कुछ बदल गया, चीजों ने और रंग ले लिया। क्योंकि सारा जगत हमारी दृष्टि है। दृष्टि बदली कि जगत बदला। दूसरी साधना सजगता की है। वह साक्षी से और गहरा कदम है। साक्षी में हम दो को मानकर चलते हैं-तू और मैं। और इन दोनों को मानकर इनके प्रति हम अलग खड़े हो जाते हैं, कि मैं तीसरा हूं। साक्षी में हम तीन में जगत को तोड़ देते हैं। ट्रायंगल बनाते हैं। वह त्रय है। साक्षी त्रय है। सजगता में हम त्रय नहीं बनाते। हम यह नहीं कहते कि किस चीज के प्रति जाग्रत हैं। हम कहते हैं, हम सिर्फ जागे हुए जीएंगे। हम यह नहीं कहते कि मैं देख रहा हूं कि मैं चल रहा हूं। हम यह कहते हैं कि हम चलते हुए होश रखेंगे कि चलना हो रहा है और इसका मुझे पूरा पता रहे। यह बेहोशी में न हो जाये। यह ऐसा न हो कि मुझे पता ही न रहे कि मैं चल रहा हूं। ऐसा रोज हो रहा है। आप खाना खाते हैं, आपको पता ही नहीं होता कि आप खाना खा रहे हैं। आप जब अपनी कार को अपने घर की तरफ मोड़ते हैं तो आपको पता नहीं रहता कि आप कार को बायें मोड़ रहे हैं। यह सिर्फ मेकेनिकल हैबिट की तरह गाड़ी मुड़ जाती है, आप अपने घर पहुंच जाते हैं। आप अपने बच्चे के सिर पर हाथ रख देते हैं कि कहो बेटा, ठीक हो? और आपको बिलकुल पता नहीं होता कि आप क्या कर रहे हैं। यह आपने कल भी कहा था, परसों भी कहा था। आप ग्रामोफोन रेकार्ड हो गए। पत्नी को देखकर आप मुस्कुराते हैं। वह आप नहीं मुस्कुरा रहे हैं, वह ग्रामोफोन रेकार्ड है। वह मुस्कुराने की आपने अप्रमाद (प्रश्नोत्तर) 297 www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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