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________________ हो जाएंगे। रात आपके सपने एकदम कम हो जायेंगे। क्योंकि सपने उसको आते हैं जो दिन भर कर्ता रहा है, रात में भी कर्ता रहता है। क्योंकि दिन भर की करने की आदत रात में एकदम से कैसे छूट जाये। दिन भर दुकान चलाता है तो रात भी चलाता रहता है। दिन भर अदालत में झगड़ता है तो रात में भी अदालत में खड़ा हो जाता है। दिन में युनिवर्सिटी में परीक्षा देता है तो रात भी परीक्षा देता रहता है। वह जो दिन में कर्ता है, वह रात में भी कर्ता बन जाता है। जो दिन में साक्षी है. वह रात में भी साक्षी बन जाता है। अब यह बड़े मजे की बात है कि दिन में आप साक्षी हो जायेंगे तो दुकान बंद नहीं हो जाएगी। दुकान तो चलती रहेगी, लेकिन आपके भीतर दुकान चलनी बंद हो जाएगी। दुकान बाहर चलती रहेगी, लेकिन रात अगर सपने में आप साक्षी हो गये तो सपना बंद हो जायेगा। क्योंकि सपने की दुकान कोई दुकान नहीं है, सिर्फ खयाल है। आप साक्षी हुए कि वह विदा हुआ। बाहर की दुकान तो चलती रहेगी, सपने की दुकान एकदम खो जाएगी। अगर साक्षी हो गए तो चिंता असंभव हो जाएगी। ___ इसलिए जिस मुल्क में जितना ही इस बात का खयाल है कि मैं कर रहा हूं, उस मुल्क में उतनी ही चिंता बढ़ जाती है। आज अमरीका में सबसे ज्यादा चिंता है, क्योंकि वहां सबसे ज्यादा खयाल है कि मैं कर रहा हूं। जो भी है, उसके पीछे 'मैं' खड़ा है। अतीत की दुनिया में चिंता बहुत कम थी। इसका कारण यह नहीं था कि चीजें कम थीं, इसका कारण यह नहीं था कि लोग बैलगाड़ी में चल रहे थे और हवाई जहाजों में नहीं चल रहे थे। अतीत में चिंता कम थी तो उसका कारण बिलकुल ही और था। ___अतीत में कर्ता के साथ एक तीसरा कोण भी था साक्षी का, जिसकी हम निरंतर कोशिश करते थे कि वह विकसित हो। और जिस दिन साक्षी थोड़ा भी विकसित हो जाता था, आदमी चिंता से बाहर हो जाता था। वह देखता था कि चीजें हो रही हैं, मैं नहीं कर रहा हूं। वह उसको कई ढंग से कहता था। कभी कहता था ईश्वर कर रहा है। यह उसका एक ढंग था था कहने का कि मैं करने वाला नहीं हूं। कभी कहता था, भाग्य कर रहा है। यह भी उसका एक ढंग था कहने का कि मैं करने वाला नहीं हूं। कभी कहता था कि जो लिखा है वह हो रहा है। यह भी उसका एक ढंग था कहने का कि करने वाला मैं नहीं हूं। लेकिन हम पागल लोग हैं। हमने उनके कहने के ढंगों को इतना गलत पकड़ा कि वे जिस लिए कह रहे थे. वह बात तो खो गई और जो कही जा रही थी. वह जोर से पकड गई। अब भी हम कहते हैं कि जो भाग्य में हो रहा है, वह हो रहा है। लेकिन हम ज्योतिषी के पास पहुंच जाते हैं हाथ दिखाने कि कोई उपाय हो तो मैं कुछ यज्ञ-हवन करूं जिससे कि भाग्य बदल जाये। अब भी हम कहते हैं, जो ईश्वर कर रहा है, वह हो रहा है। लेकिन सिर्फ कहते हैं। इसकी हमारे प्राणों में कहीं कोई जगह नहीं है। कहीं कोई जगह नहीं है, शब्द रह जाते हैं हाथों में, ये सारे के सारे शब्द सिर्फ कहने के ढंग थे। इनके पीछे जो असली बात थी वह तीसरा कोण था-साक्षी का, कर्ता से अलग। इसलिए कृष्ण अर्जुन से कह पाते हैं कि तू लड़, तू यह फिक्र ही क्यों करता है कि तू 296 ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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