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तो मैं ऐसा न जानूं कि आपने पत्थर मारा और मैं मारा गया, वरन ऐसा जानूं कि आपने मारा
और यह मारा गया ऐसा मैंने जाना। मैं निरंतर त्रिकोण के तीसरे कोने पर खड़ा रहूं। मैं निरंतर दो के बीच में अपने को न बांटूं, तीसरे पर उचक कर खड़ा हो जाऊं, तीसरे पर छलांग लेता रहूं। घर में आग लग जाए तो मैं ऐसा न जानूं कि मेरा घर जल रहा है, ऐसा जानूं कि इसका घर जल रहा है और मैं देख रहा हूं। __जिंदगी को तीन हिस्से में तोड़ना साक्षी की साधना का उपक्रम है। हम जिंदगी को दो हिस्से में तोड़ते हैं-यहां मैं और तू है। आप हैं गाली देनेवाले, मैं हूं गाली लेनेवाला। बस दो ही हैं, तीसरा वहां नहीं है। साक्षी में हम तीसरे को जोड़ते हैं निरंतर हर स्थिति में, मैं दूसरा न बनूं, बल्कि मैं तीसरा रहूं। और जैसे-जैसे यह तीसरा कोना स्पष्ट होता चला जाता है, वैसे-वैसे दोनों ही हंसने योग्य मालूम होने लगते हैं-वह जिसने गाली दी, और वह जिसको गाली दी गई।
राम न्यूयार्क में थे। कुछ लोगों ने उन्हें पत्थर मारे, कुछ लोगों ने उन्हें गालियां दीं। लौटकर उन्होंने अपने मित्रों से कहा, आज राम बड़ी मुश्किल में फंस गए। लोग बड़ी गालियां देने लगे। कुछ लोग पत्थर भी मारने लगे। बड़ा मजा आया। तो उन मित्रों ने कहा, आप किस तरह की बात कर रहे हैं? आप ही को तो गाली दी थी उन्होंने। राम ने कहा. मझे कैसे गाली देंगे? क्योंकि मेरा नाम तो मुझे भी पता नहीं है, तो उन्हें पता कैसे हो सकता है? वे राम को गाली दे रहे थे। उन लोगों ने पूछा, क्या राम आप नहीं हैं? तो राम ने कहा, अगर मैं राम होता तो फिर मजा न ले पाता, फिर बहुत कष्ट लेकर लौटता। मैं खड़ा देख रहा था कि कुछ लोग गाली दे रहे हैं और बेचारा राम गाली खा रहा है। और मैं खड़ा देख रहा था, मैं कह रहा था कि राम आज अच्छी मुश्किल में फंसे।।
यह जो तीसरा बिंदु है, इसे उघाड़ा जा सकता है। साधक के लिए पहला चरण साक्षी से ही शुरू होता है। यह आसान है। इन तीनों शब्दों में सबसे ज्यादा आसान साक्षी है। इसे देखते रहें। खाना खा रहे हैं, तब देखते रहें कि खाना खाया जा रहा है। जिसको आप अब तक 'मैं' समझते रहे हैं, वह खा रहा है। और अब तीसरा-पीछे खड़े होकर जरा देखें टेबल के किनारे से-आप देख भी रहे हैं, खाना खाया जा रहा है। खाना खा रहा है कोई, और आप देख भी रहे हैं।
जैसे-जैसे यह तीसरा बिंदु उभरेगा, वैसे-वैसे आपकी जिंदगी में दुख क्षीण होने लगेगा, क्योंकि साक्षी को दुख नहीं दिया जा सकता। साक्षी को दुख दिया ही नहीं जा सकता, सिर्फ कर्ता को दुख दिया जा सकता है। जब आपको लगता है, मैं खाना खा रहा हूं, तब आपको दुख दिया जा सकता है। जब आप कहते हैं, मैं प्रेम कर रहा हूं, तब आपको दुख दिया जा सकता है। लेकिन जब आप कहते हैं कि एक प्रेम कर रहा है, दूसरा प्रेम झेल रहा है, और आप तीसरे देखने वाले हैं, तो आपको दुख नहीं दिया जा सकता है। आपको चिंतित नहीं किया जा सकता।
अगर आप दिन में दस-पांच बार साक्षी का स्मरण कर लें तो रात आपके सपने खत्म
अप्रमाद (प्रश्नोत्तर) 295
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