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उपनिषद के ऋषि प्यासे हैं; जाना उसे, जिसे जानने को कृष्ण गीता में कहते हैं; जाना उसे, जिसके लिए जीसस सूली पर लटक जाते हैं; जाना उसे, जिसके लिए चालीस वर्ष तक बुद्ध
और महावीर गांव-गांव एक-एक आदमी का द्वार खटकाते फिरते हैं। लेकिन इसे जानने के लिए स्वयं को बिलकुल ही मिट जाना पड़ता है। शरीर की तरह, आत्मा की तरह, ईश्वर की तरह, ब्रह्म की तरह भी स्वयं को मिट जाना पड़ता है। जीसस के एक वचन से मैं इस बात को पूरा करूं।
जीसस ने कहा है, धन्य हैं वे जो अपने को खोने में समर्थ हैं, क्योंकि केवल वे ही उसे पा सकेंगे जो स्वयं को खो सकते हैं। और अभागे हैं वे जो अपने को बचाने में लगे हैं, क्योंकि जो अपने को बचायेगा, वह सब-कुछ खो देता है। __ ये तीन सूत्र, आप जहां हैं वहां से शुरू करें, और आगे की यात्रा अपने आप खुलती चली जाएगी। ये ही तीन सूत्र निरंतर प्रयोग करने पड़ेंगे उस समय तक, जब तक कि कुछ भी बाकी रहे। और जब कुछ भी बाकी न रह जाये, आप भी बाकी न रह जायें और सूत्र भी खो जायें। कोई वक्तव्य देने का उपाय न रह जाये। मेहर बाबा की तरह कहने की जगह न रहे कि मैं ईश्वर हूं। राम तीर्थ की तरह कहने की जगह न रहे कि चांद-तारे मुझमें घूमते हैं। अहं ब्रह्मास्मि की घोषणा की भी जगह न रह जाये। क्योंकि किसको घोषणा करनी? कौन घोषणा करेगा? जब सब शब्द शन्य हो जायें. सब वाणी गिर जाये. सब व्यक्तित्व खो जाये. तब जो शेष रह जाता है वही परम, वही द अल्टीमेट, वही सब धर्मों की खोज, वही सब प्राणों की प्यास, वही सब आत्माओं की आकांक्षा है। वही है अमृत।
जहां तक आकार है, वहां तक मृत्यु है; जहां निराकार है, वहीं अमृत है, वहीं है आनंद। क्योंकि जहां तक दसरा है, वहां तक दुख है; जहां दसरा नहीं है, वहीं आनंद संभव है, वहीं है शांति। क्योंकि जहां तक 'मैं' हूं, वहां तक अशांति है, जहां 'मैं' भी नहीं हूं वहीं शांति है। सत्-चित्-आनंद वहां है। कहने को नहीं, अनुभव में; बोलने को नहीं, जानने में; बताने को नहीं, हो जाने में। वहां ऐसा नहीं कि सत्-चित्-आनंद जाना जाता है, बल्कि ऐसा कि वहां हम सत्-चित्-आनंद हो गए।
ओशो, अप्रमाद की साधना के संदर्भ में कृपया समझाइए कि साक्षी, सजगता और तथाता की साधना में क्या-क्या समानताएं और भिन्नताएं हैं।
साक्षी, सजगता और तथाता, इन तीनों शब्दों को अप्रमाद की साधना के लिए समझ लेना उपयोगी है। साक्षी पहला चरण है। साक्षी का मतलब है कि जीवन में मैं एक गवाह की तरह गुजरूं। साक्षी का मतलब है कि मैं एक विटनेस की तरह, एक देखने वाले की तरह, द्रष्टा की तरह जिंदगी में जीऊं। अगर आप मुझे गाली दें तो मैं अपने को अनुभव न करूं कि मुझे गाली दी गई। मैं ऐसा जानूं कि मैंने जाना कि आपने इसको गाली दी। आप पत्थर मारें
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ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
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