________________
जिन लोगों ने दुनिया में सृष्टि के जन्म की बातें कहीं हैं उनमें से अधिक लोग ऐसे हैं जिन्हें कॉस्मिक अनकांशस का अनुभव हुआ है। इसलिए वे इस तरह की बात कहते हैं कि परमात्मा ने कब दुनिया बनाई, कब पृथ्वी बनी, कब चांद-तारे बने। उनकी तारीखों में भूलचूक हो सकती है, क्योंकि उस क्षण में तारीखों का हिसाब रखना बहुत मुश्किल है। लेकिन उन व्यक्तियों के अनुभव ऑथेंटिक हैं। अनुभव ऑथेंटिक हैं, अल्टीमेट नहीं; प्रामाणिक हैं, पर अंतिम नहीं।
तीसरे, इस कॉस्मिक अनकांशस में, इस ब्रह्म अचेतन में भी अगर व्यक्ति उन्हीं सूत्रों का स्मरण रख सके-और सूत्र वही रहेंगे कि यह शरीर भी विराट ब्रह्म का शरीर ही है। शरीर छोटा हुआ, छह फुट का हुआ, कि अनंत-अनंत योजन विस्तारवाला हुआ, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। विचार मेरे हुए कि परम ब्रह्म के हुए, इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता। यह सिर्फ मात्राओं के फर्क हैं-अगर यहां भी वह स्मरण रखे तो चौथी छलांग लग जाती है और व्यक्ति महानिर्वाण में प्रवेश कर जाता है। जहां मन समाप्त हो जाता है, जहां मैं समाप्त हो जाता है, वहां वह यह भी नहीं कहता कि मैं ब्रह्म हूं। बुद्ध जैसा व्यक्ति भी यह नहीं कहता कि मैं ब्रह्म हं। वह यह भी नहीं कहता कि मैं ईश्वर हं। वह यह भी नहीं कहता कि मैं आत्मा हूं। ____ इसलिए बुद्ध को समझना बहुत मुश्किल पड़ा है। क्योंकि वे कहते हैं कि आत्मा भी नहीं है, वे कहते हैं कि ईश्वर भी नहीं है, वे कहते हैं कि ब्रह्म भी नहीं है। फिर जो बच जाता है वही है, दैट व्हिच रिमेन्स। अब वह क्या बच जाता है? शून्य बच जाता है, जिसकी कोई सीमा नहीं है। शून्य बच जाता है, जिसमें कोई विचार की तरंग नहीं है। शून्य बच जाता है, जिसमें कोई सेंटर नहीं है, कोई ईगो नहीं है। शून्य बच जाता है। कहना चाहिए कुछ भी नहीं बच जाता है।
यह जो सब-कुछ का खो जाना है, वही सब-कुछ का पाना भी है। यह परम है, यह आखिरी है। इसके पार ? इसके पार का उपाय नहीं है। क्योंकि अब कुछ पार भी किसी के जा सको, वह भी नहीं बच जाता है। कॉस्मिक अनकांशस से, ब्रह्म अचेतन से जो छलांग लगती है, वह शून्य में, परम में, सत्य में, महानिर्वाण में, मोक्ष में, उसे जो भी हम नाम देना चाहें, दे सकते हैं। असल में सब नाम व्यर्थ हैं। सब भाषा व्यर्थ है। इसी में बाधाएं हैं। पहली बाधाएं तो हमारी अपनी हैं, इसलिए मैंने उनकी विस्तार से चर्चा की।
हमारी मख्य बाधाएं तीन हैं-बाहर के जगत में सख की आशा. शरीर के जगत में अमृतत्व की आशा, मन के जगत में सत्य की आशा। तीन बाधाएं हैं। फिर ये तीन बाधाएं प्रत्येक तल पर वापस पुनरुक्त होती हैं। लेकिन आपको उससे बहुत लेना-देना नहीं है। इन तीन बाधाओं को पार कीजिए तो परमात्मा आपको नई तीन बाधाएं दे देगा। उनको पार कीजिए तो और गहरे तल पर नई बाधाएं होंगी। बाधाएं यही होंगी, सिर्फ उनका रूप और तल बदलता जाएगा। और यह अंत तक पीछा करेंगी। और जब कोई भी बाधा न रह जाये. जब लगे कि अब कुछ बचा ही नहीं, तभी आप जानना कि जाना उसे, जिसे जानने को
अप्रमाद (प्रश्नोत्तर) 293
www.jainelibrary.org
Jain Education International
For Personal & Private Use Only