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________________ में आदमी अपने को करीब-करीब ईश्वर जैसा अनुभव करता है। इसलिए बहुत-से लोग जो घोषणा कर देते हैं कि मैं ईश्वर हूं, उसका कारण वही है। जैसे कि मेहर बाबा की घोषणा थी कि मैं ईश्वर हूं, मैं अवतार हूं। ___ इसलिए समष्टि अचेतन में जो व्यक्ति उतर जाता है, वह आपको धोखा नहीं देता। ऐसा उसे लगता है कि वह ईश्वर है, क्योंकि सबकी चेतना का सब-कुछ उसे अपना मालूम होने लगता है। हमें लगता है कि कोई आदमी अपने को ईश्वर कहे तो कैसा पागलपन है। गहरे में पागलपन है। असल में यह भी कोई आखिरी स्थिति नहीं है। इसमें सबकी चेतना, सबके चेतन कर्म अपने मालूम होने लगते हैं। इसलिए मेहर बाबा कह सकते हैं...कि गांधी मरे तो वह कह देते हैं कि मैंने उन्हें अपने में लीन कर लिया। नेहरू मरे तो वह कह देते हैं कि मैंने उन्हें अपने में लीन कर लिया है। ___कुछ लोग कहेंगे कि यह आदमी चालाक, धोखेबाज मालूम पड़ता है। जहां हम जीते हैं, वहां से यह धोखेबाजी मालूम होगी। धोखा है, धोखेबाजी नहीं है। धोखा मेहर बाबा को है, आपके लिए धोखेबाजी नहीं कर रहे हैं वे। ऐसा लगता है! जब समष्टि, सारे लोगों का अचेतन मन, मेरा ही मन मालूम पड़ने लगता है, तो जिसकी भी देह छूटती है, लगता है वह मुझ में ही लीन हो गया। सबकी देह, सबके कर्मों की देह, मेरी देह हो गई। और सबके मनों के विचार मेरे विचार हो गए। लेकिन अभी भी, अभी भी 'मैं' मौजूद हूं। इसलिए मेहर बाबा कह सकते हैं कि मैं अवतार हूं। और जब तक 'मैं' मौजूद है तब तक परम सत्य की उपलब्धि नहीं है। __ अगर हम यहां भी स्मरण रख सकें कि यह मेरी ईश्वर जैसी देह भी देह ही है, और यह मेरा ईश्वर जैसा मन, यह डिवाइन माइंड भी मन ही है, यह सुपरामेंटल भी मन ही है, अगर यहां भी हम स्मरण रखें उन्हीं सूत्रों का, तो एक और छलांग लग जाती है और व्यक्ति कॉस्मिक अनकांशस में, ब्रह्म अचेतन में उतर जाता है। ब्रह्म अचेतन में वह कह पाता है, अहं ब्रह्मास्मि, मैं ब्रह्म हूं। तब ये चांद-तारे उसे अपनी देह के भीतर घूमते मालूम पड़ने लगते हैं। ___ स्वामी राम निरंतर कहा करते थे कि चांद-तारे मेरे भीतर घूमते हैं, सूरज मेरे भीतर उगता है! अगर हम मनोवैज्ञानिक से कहेंगे तो वह कहेगा कि यह आदमी न्यूरोटिक है, साइकोटिक है। इस आदमी का दिमाग खराब हो गया है। क्योंकि चांद-तारे सदा बाहर हैं, चांद-तारे भीतर कैसे हो सकते हैं। ___मनोवैज्ञानिक के कहने में भी सचाई है। जहां तक उसकी समझ है, वह ठीक कह रहा है। लेकिन उसे रामतीर्थ जैसे व्यक्ति के अनुभव का पता नहीं है। रामतीर्थ जैसे व्यक्ति का विस्तार कॉस्मिक बाडी का हो गया है। इस विश्व की जो अनंत सीमाएं हैं वही अब उनकी सीमाएं हैं। इसलिए सब उन्हें अपने भीतर घूमता हुआ मालूम पड़ेगा। चांद-तारे उसे अपने भीतर घूमते हुए मालूम पड़ेंगे। ऐसा व्यक्ति कह सकता है कि मैंने जगत को बनते देखा और मैंने जगत को मिटते देखा, और मैं चांद-तारों को जन्मते देखता हूं और चांद-तारों को मिटते देखता हूं। ऐसे व्यक्ति की स्मृतियां कॉस्मिक मेमोरी से आनी शुरू हो जाती हैं। 292 ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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