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और विचारों के लिए स्मरण रखा, वही अचेतन में अचेतन के विचार, कल्पनाओं और कामनाओं के लिए स्मरण रखना पड़ेगा। अचेतन की देह पिछले जन्मों से निर्मित देह है, और अचेतन का मन समस्त पिछले जन्मों की स्मृतियों का जोड़ है। उसमें सब छिपा पड़ा है।
मन का एक अदभुत नियम है कि मन एक बार भी जिस बात को याद कर ले उसे कभी भूलता नहीं। आप कहेंगे, ऐसा नहीं मालूम होता । बहुत-सी बातें हमें भूल जाती हैं। वह सिर्फ आपको लगता है कि आप भूल गए, आप भूल नहीं सकते । स्मरण किया जा सकता है। सिर्फ अस्तव्यस्त हो गया होता है। कभी कोई आदमी कहता है कि बिलकुल जबान पर रखा है आपका नाम, लेकिन याद नहीं आ रहा है। यह आदमी बड़े मजे की बात कह रहा है। वह यह कह रहा है कि जबान पर रखा है और याद नहीं आ रहा है! दोनों का क्या मतलब है? ये दोनों कंट्राडिक्टरी हैं। अगर जबान पर रखा है तो कृपा करके बोलिये। कहता है, जबान पर तो रखा है लेकिन याद नहीं आ रहा है। असल में उसे दो बातें याद आ रही हैं। उसे यह याद आ रहा है कि मुझे याद था, और यह भी याद आ रहा है कि फिलहाल याद नहीं आ रहा है ।
वह बगीचे में चला गया है, गड्ढा खोद रहा है, सिगरेट पी रहा है, कुछ और काम में लग गया है। अखबार पढ़ने लगा है, रेडियो खोल लिया है, और अचानक बबल-अप जाता है, अचानक याद आ जाता है । वह जो याद नहीं आ रहा था, एकदम भीतर से उठ आता है। वह कहता है, हां याद आ गया।
ठीक ऐसे ही अचेतन में उतरते ही पिछले जन्मों का सब-कुछ याद आना शुरू हो जाता है, लेकिन वह भी मन है । अगर उस मन का भी स्मरण रखें, कि इस मन से भी नहीं पा सकूंगा सत्य को, तो आदमी की दूसरी छलांग लग जाती है। वह दूसरी छलांग है कलेक्टिव अनकांशस में, समष्टि अचेतन में ।
यह जो पहली छलांग थी, अपने व्यक्तिगत अचेतन में थी, इंडिविजुअल अनकांशस में थी, मैं अपने अचेतन में उतरा था । और जिस दिन अपने अचेतन से छलांग लगती है, उस दिन मैं सबके अचेतन में उतर जाता हूं। उस दिन दूसरा आदमी सामने से गुजरता है तो दिखाई पड़ता है कि यह आदमी किसी की हत्या करने जा रहा है। उस दिन दूसरा आदमी आया भी नहीं और पता चल जाता है कि यह आदमी क्या पूछने आया है। उस दिन कोई आदमी आंख से गुजरता दिखाई पड़ता है और उसी क्षण पता चल जाता है कि इसकी मौत तो करीब आ गई है, यह मरने के करीब है । उस दिन व्यक्ति समष्टि अचेतन में उतर जाता है। उस गहराई में हम सबसे जुड़ जाते हैं, सबके अचेतन से जुड़ जाते हैं।
वह बड़ा विराट अनुभव है, वह बड़ा गहरा अनुभव है। क्योंकि सारा जगत भीतर से एक मालूम होने लगता है, पूरा जीवंत - ज -जगत एक मालूम होने लगता है । सब जीवन अपना
मालूम होने लगता है।
लेकिन यहां से भी छलांग लगानी है । यह भी परम स्थिति, अल्टीमेट नहीं है। इसकी भी देह है। इसमें समस्त लोगों के कर्मों की जो देह है, वह मेरी देह बन जाती है। इस
अप्रमाद (प्रश्नोत्तर)
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