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अभी तक हम उसे असिद्ध नहीं कर पाये कि नहीं है। लेकिन पदार्थ तो सिद्ध हो गया है कि नहीं है। अब वे कहते हैं, एनर्जी है, सिर्फ ऊर्जा है। कितने दिन कहेंगे, कहना मुश्किल है। बहुत ज्यादा देर नहीं चलेगी यह बात, क्योंकि कोई चीज ज्यादा देर नहीं चलती है। आदमी के सब सिद्धांत ओछे पड़ जाते हैं, सत्य बड़ा पड़ जाता है। सत्य रोज बड़ा सिद्ध होता है।
इसलिए तीसरा सूत्र स्मरण रखना जरूरी है साधक को, कि मन के किन्हीं सत्यों को सत्य मत समझ लेना। मन के पास कोई भी सत्य नहीं है, मन के पास केवल सत्य के खयाल हैं, सत्य के सिद्धांत हैं। सत्य के लिए दिए गए शब्द हैं। मन के पास ईश्वर 'शब्द' है, ईश्वर बिलकुल नहीं है। मन के पास शब्दों की भीड़ है। मन शब्दों से आदमी को धोखा दे देता है।
और यह धोखा गहरे से गहरा है। बाहर के जगत का धोखा जल्दी टूट जाता है, शरीर के धोखे को भी बहत देर नहीं लगती टने में, पर मन का धोखा टने में सबसे ज्यादा देर लगती है। इसलिए तीसरी बात, साधक को निरंतर स्मरण रखना है कि मन जो भी कह रहा है वह मन की कल्पना है, इमेजिनेशन है। वह मन की मान्यता है, सत्य नहीं है। मन को सत्य का पता नहीं है, पता हो भी नहीं सकता है। ___ यह तीसरा स्मरण अगर बना रहे तो धीरे-धीरे मन सिद्धांतों से खाली हो जाता है, शास्त्रों से मुक्त हो जाता है, और धीरे-धीरे दर्शन, धर्म और वाद से मुक्त हो जाता है। और ये तीन घटनाएं अगर घट जायें तो व्यक्ति की तत्काल छलांग अपने अचेतन मन में लग जाती है। वह अपने भीतर उतर जाता है। खूटियां टूट गयीं। अचेतन मन में उतरते ही क्रांति शुरू होती है। अचेतन मन में उतरते ही हम अपने जीवन के गहरे तलों से पहली दफा संस्पर्शित होते हैं, उनके स्पर्श में आते हैं। पहली बार हम जीवन को भीतर से अनुभव करते हैं।
लेकिन अचेतन पहला ही कक्ष है। और अचेतन में फिर इन तीन बातों को स्मरण रखना पड़ेगा। अचेतन का भी अपना शरीर है। अचेतन का शरीर उसके पिछले जन्मों के समस्त कर्माणुओं से बना हुआ है, उसकी अपनी बॉडी है, बॉडी ऑफ द अनकांशस। ____ आज मनोवैज्ञानिक अचेतन की बात करते हैं, अनकांशस की। चाहे जुंग हो, चाहे फ्रायड हो और चाहे एडलर हो और चाहे दूसरे, वे सारे के सारे लोग अचेतन की बात करते हैं। लेकिन उन्हें उस तरह के अचेतन की कोई खबर नहीं है जिस तरह की खबर साधक को है। अचेतन को उन्होंने चेतन को समझने के लिए एक सिद्धांत की तरह उपयोग किया है। जिन्होंने अचेतन को साधक की तरह जाना है, वे कहते हैं कि अचेतन के पास अपना शरीर है, वह कर्माणुओं का शरीर है। वह जो अनंत-अनंत जन्मों में कर्म किए गए हैं, उनकी देह है, उनकी बॉडी है, उनकी अपनी काया है। ___ अचेतन में उतर कर स्मरण रखना पड़ेगा कि यह जो कर्मों की सूक्ष्म देह है, यह भी मैं नहीं हूं, यह भी मरणधर्मा है। यद्यपि हमारा यह शरीर, जो दिखायी पड़ता है पुदगल पदार्थ से बना हुआ, यह एक जन्म में मर जाता है। पर कर्मों की देह सिर्फ एक बार मरती है, मुक्ति के क्षण में, लेकिन वह भी मरणधर्मा है। जो हमने बाहर के शरीर के लिए स्मरण रखा है, वही अचेतन में, भीतर के शरीर के लिए स्मरण रखना पड़ेगा। और जो हमने बाहर के मन
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ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
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