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________________ भी सत्य था; और जब बुद्धि नहीं होगी तब भी सत्य होगा। क्योंकि सत्य इतना विराट है और बुद्धि इतनी छोटी है। आदमी की इस छोटी-सी खोपड़ी में एक छोटा-सा कंप्यूटर ही है। अब तो उससे बेहतर कंप्यूटर बनने शुरू हो गए हैं, लेकिन कोई कंप्यूटर यह नहीं कह सकता कि मैं सत्य दे दूंगा। कंप्यूटर इतना ही कह सकता है कि जो तुमने मुझे फीड किया, जो सूचनाएं तुमने मुझे पिला दीं और खिला दीं, मैं उनको जब वक्त पड़े तब दोहरा दूंगा। बुद्धि भी कंप्यूटर से ज्यादा नहीं है। यह नेचुरल कंप्यूटर है। बुद्धि ने जो-जो इकट्ठा कर लिया उसे जुगाली करके दोहरा देती है। जब मैं आपसे पूछता हूं, ईश्वर है? तो आप जो उत्तर देते हैं वह आप नहीं दे रहे हैं। सिर्फ आपकी बुद्धि का दिया गया उत्तर है। और बुद्धि वापस रि-ईको कर देती है, प्रतिध्वनित कर देती है। अगर आप जैन घर में पैदा हुए हैं तो बुद्धि कह देगी कि कैसा ईश्वर? कोई ईश्वर नहीं है। आत्मा ही सब-कुछ है। अगर आप हिंदू घर में पैदा हुए हैं तो कहेंगे कि हां, ईश्वर है। अगर कम्युनिस्ट घर में पैदा हुए हैं तो कहेंगे, कोई ईश्वर नहीं है, सब बकवास है। लेकिन ये सभी उत्तर कंप्यूटराइज्ड हैं, ये सभी उत्तर बुद्धि ने पकड़ लिए हैं, उनको दोहरा रही है। बुद्धि सिर्फ रिप्रोड्यूस करती है, बुद्धि कुछ जानती नहीं। बुद्धि ने अब तक कुछ भी नहीं जाना है, न धर्म, न दर्शन, न विज्ञान। लेकिन विज्ञान के संबंध में सोचते वक्त ऐसा लगता है कि विज्ञान ने तो कुछ जान लिया है। वह भी बड़ी भ्रांति मालूम पड़ती है। क्योंकि न्यूटन जो जानता था, आइंस्टीन उसको गलत कर जाता है। आइंस्टीन जो जानता था, वह आइंस्टीन के बाद की पीढ़ी गलत किये दे रही है। अब इस दुनिया में कोई वैज्ञानिक इस आश्वासन से नहीं मर सकता है कि मैं जो जानता हूं वह सत्य है। वह इतना ही कह सकता है कि पिछले असत्य से मेरा असत्य अभी ज्यादा अपीलिंग है, ज्यादा आकर्षक है। आनेवाले लोग उसे असत्य कर देंगे। वे दूसरे असत्य को पकड़ा देंगे। या इसको कहने का एक वैज्ञानिक का जो ढंग है, वह कहता है, अप्रॉक्सिमेट टूथ है। वह कहता है, करीब-करीब सत्य है। लेकिन करीब-करीब कहीं सत्य होता है? या तो सत्य होता है या असत्य होता है, करीब-करीब का मतलब ही यही है कि वह असत्य है। ___ अगर मैं आपको कहूं कि मैं करीब-करीब आपको प्रेम करता हूं, तो इसका क्या मतलब होता है ? इसका कोई मतलब नहीं होता। इससे तो बेहतर है कि आपको कहूं कि मैं आपको घृणा करता हूं, क्योंकि वह सच तो होगा। करीब-करीब प्रेम का कोई मतलब नहीं होता है। या तो प्रेम होता है या नहीं होता है। जिंदगी में करीब-करीब बातें होती ही नहीं। __विज्ञान कहता है, करीब-करीब सत्य, लेकिन सब सत्य रोज गड़बड़ हो जाते हैं। सौ वर्षों में विज्ञान के सब सत्य डगमगा गए। सौ वर्ष पहले विज्ञान बिलकुल आश्वस्त था कि मैटर है पदार्थ है। सौ वर्ष में पता चला कि पदार्थ ही नहीं है और कछ भी हो सकता अब वे कहते हैं कि मैटर है ही नहीं। सौ साल पहले विज्ञान कहता था कि पदार्थ ही सत्य है, ईश्वर सत्य नहीं है। आज वैज्ञानिक कहता है कि पता नहीं ईश्वर हो भी सकता है, क्योंकि अप्रमाद (प्रश्नोत्तर) 289 www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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