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________________ सुबह जब उठे, तो अपने शरीर को गौर से देख लें और जानें कि शरीर मृत्यु है। सांझ को जब सोने लगें तब भी शरीर को गौर से देख लें और जानें कि शरीर मृत्यु है। स्नान जब करें तब शरीर को गौर से देख लें और जानें कि शरीर मृत्यु है। भोजन जब करें, तब शरीर को गौर से देख लें और जानें कि शरीर मृत्यु है। दिन में दस-बीस मौकों पर, शरीर मृत्यु है, इसका स्मरण माला के गुरियों की तरह आपके भीतर प्रविष्ट हो जाये, तो आपके शरीर से खूटी टूट जाएगी, बहुत ज्यादा देर नहीं लगेगी। जैसे ही दिखने लगेगा कि शरीर मृत्यु है, तो शरीर के भीतर जो हमारे तादात्म्य हैं, आइडेंटिटी हैं कि यह मैं ही हूं, यह छिन्न-भिन्न हो जाएगा। उसे छिन्न-भिन्न करना पड़ेगा, उसे मिटा ही डालना पड़ेगा। वह आइडेंटिटी, वह तादात्म्य टूटना ही चाहिए। वही खूटी है, जो शरीर को बांधे हुए है। __ और तीसरा सूत्र, जिसे हम मन कहते हैं, बुद्धि कहते हैं, विचार कहते हैं, इससे हम सत्य को कभी भी न जाने सकेंगे। इससे कभी सत्य जाना नहीं गया है। इससे हम केवल ज्यादा अपीलिंग असत्यों का निर्माण करते हैं। मनुष्य ने हजार-हजार दर्शन, हजार-हजार फिलॉसफीज खड़ी की हैं, अनेक शास्त्र-सिद्धांत निर्मित किए हैं। जिंदगी का क्या है सत्य, इसको बतानेवाले न मालूम कितने-कितने सिस्टम्स बनाए हैं। पर फिलॉसफी हार गई, अब तक कोई उत्तर नहीं मिला। बट्रेंड रसल ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि बचपन में जब मैं युनिवर्सिटी में दर्शनशास्त्र पढ़ने गया था तो मैंने सोचा था कि जीवन में कम से कम जरूरी-जरूरी सवालों के जवाब तो मिल ही जाएंगे। फिलॉसफी का मतलब ही यही है, दर्शन का मतलब ही यही है कि जिंदगी जो सवाल पूछती है, उसके जवाब होने चाहिए। बर्टेड रसल ने मरने के पहले, अपने नब्बे वर्ष के अनुभव के बाद लिखा है, लेकिन अब मैं बूढ़ा होकर यह कह सकता हूं कि फिलॉसफी से मुझे नये-नये सवाल तो मिले, लेकिन जवाब बिलकुल नहीं मिले। और हर जवाब, जिसे मैंने अपनी नासमझी में जवाब समझा, थोड़े ही दिन में नये सवालों का पिता सिद्ध हुआ, और कुछ भी नहीं हुआ। ____ हर जवाब नये सवालों को पैदा करता रहा है। बुद्धि से दर्शन हार गया, इसलिए आज दर्शन पर कोई नई किताब नहीं लिखी जा रही है। अब दर्शनशास्त्री सारे विश्वविद्यालयों में सारी दुनिया के दर्शन के नये सिद्धांत निर्मित नहीं कर रहे हैं। वे केवल पुराने दर्शन गलत थे, इसी को सिद्ध कर रहे हैं। एक वैक्यूम, एक शून्य खड़ा हो गया है। दर्शन के पास कोई उत्तर नहीं है। धर्मशास्त्रों ने उत्तर दिए हैं, लोग उनको कंठस्थ कर लेते हैं। बुद्धि उनसे तृप्त होने की कोशिश करती है, पर कभी तृप्त नहीं हो पाती। क्योंकि जीवन तब तक तृप्त न होगा जब तक जान न ले। विश्वास तृप्ति नहीं दे पाता। बुद्धि विश्वासों से भर जाती है। कोई ईसाई है, कोई हिंदू है, कोई मुसलमान है, कोई जैन है, कोई बौद्ध है। ये सब विश्वासों के फासले हैं और ये सब बुद्धि में जीनेवाले लोगों के ढंग हैं। सत्य अब तक बुद्धि से मिला नहीं, मिलेगा भी नहीं। क्योंकि जब बुद्धि नहीं थी, तब 288 ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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