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________________ वही आकांक्षाएं आज फिर पकड़ेंगी जो कल पकड़े हुए थीं। कुछ करें मत, सिर्फ स्मरण करें। जस्ट रिमेंबर। कसम मत खाएं कि आज कल जैसा नहीं करूंगा। कसम खाने का तो मतलब यही हुआ कि कल से कोई समझ नहीं मिली, इसलिए कसम खानी पड़ रही है। कल का स्मरण भर करें। यह मत कहें कि अब नहीं करूंगा। यह मत कहें कि अब क्रोध नहीं करूंगा। इतना ही कहें कि कल भी क्रोध किया था, बस इतना ही स्मरण रखें। परसों भी क्रोध किया था। कल भी पछताया था, परसों भी पछताया था। आज के लिए कोई निर्णय न लें। केवल कल का स्मरण आज आपके पीछे छाया की तरह घूमता रहे। तो क्रोध असंभव हो जाएगा। सुख की दौड़, पागलपन हो जाएगी। दूसरे से कुछ मिल सकता है, इसकी आशा क्षीण हो जाएगी। और जिंदगी पर पकड़ रोज-रोज ढीली होने लगेगी। मुट्ठी खुलने लगेगी। जैसे ही जीवन पर पकड़ कम होती है, भीतर प्रवेश शुरू हो जाता है। इसलिए पहला सूत्र कि जीवन एक धोखा है, इसका स्मरण रखें। दूसरा सूत्र, यह शरीर मरणधर्मा है। इसे स्मरण रखें। यह शरीर मृत्यु की ही काया है। यह डेथ एंबाडीड है। नार्मन ब्राउन ने एक किताब लिखी है, लव्स बॉडी-प्रेम की काया। मेरा मन होता है कि कभी कोई एक किताब लिखे, डेथ्स बॉडी-मृत्यु की काया। यह शरीर सिर्फ मृत्यु की तैयारी है। इस शरीर से मृत्यु के अतिरिक्त और कुछ मिलनेवाला नहीं है। पहले तो जगत एक धोखा है, इससे बाहर के जगत से मुट्ठी ढीली हो जाएगी। फिर हमारे शरीर पर हमारी इतनी पकड़ है कि शरीर ही हमारा सब-कुछ मालूम होता है। और जिसे शरीर ही सब-कुछ मालूम होता है, वह भीतर न जा सकेगा। उसने शरीर के किनारे की खूटी जोर से पकड़ रखी है। यह छोड़नी पड़ेगी, यह नाव खोलनी पड़ेगी। भीतर जाने के लिए इस खूटी से हाथ ढीले करने पड़ेंगे। यह शरीर मृत्यु है, यह स्मरण... । फिर ऐसा भी समझाना नहीं है अपने को कि यह शरीर मरेगा, और मैं तो अमर हूं। ऐसा मत समझाना अपने को। आपको मैं कौन हूं इसका तो कोई पता नहीं है, इसलिए यह मत समझाना कि शरीर तो मरेगा और मैं अमर हूं। वह अमर होने की आकांक्षा आप अपने साथ खड़ी मत कर लेना। अभी इतना ही जानना कि यह शरीर मरता है और मुझे मेरा कोई पता नहीं है। क्योंकि अगर आपने कहा कि मैं अमर हूं, आत्मा अमर है, शरीर ही मरेगा, तो आप भीतर नहीं जा पायेंगे। क्योंकि ये शब्द आपने बाहर से उठा लिये। ये शब्द उपनिषद और गीता से सुन लिये। ये शब्द कुरान और बाइबिल के हैं, ये आपके नहीं हैं। भीतर जाना नहीं होगा। ये शब्द ज्यादा से ज्यादा बुद्धि में अटका देंगे आपको। वह भी एक खूटी है, जो भीतर जाने के लिए तोड़नी पड़ती है। उसकी बात मैं तीसरे सूत्र में आपसे करना चाहता हूं। __ शरीर मरणधर्मा है, इतना स्मरण काफी है। आत्मा अमर है, कृपा करके यह दूसरा हिस्सा आप मत जोड़ें, इसका आपको पता नहीं है। इसका किसी दिन पता चला सकता है, लेकिन जिस दिन पता चलेगा उस दिन दोहराने की जरूरत न रह जाएगी। अभी इतना ही जानें कि शरीर मरणधर्मा है। और इस जानने में कोई भी बाधा नहीं है। आत्मा अमर है. इसमें संदेह उठेंगे। आत्मा अमर है या नहीं, इसमें मन में शंकायें खड़ी होंगी। इसलिए कोई भी 286 ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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