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________________ आए तो उसने अपने बेटे से कहा, अपने हाथ फैलाकर इस भिखारी बाप से मांग ले कि बेटे के लिए वसीयत क्या है? बेटे के लिये क्या है ? जन्म दिया था सिर्फ, अब जीवन के लिए पाथेय भी दे दें। मजाक था, क्रूर मजाक था। व्यंग्य था और अत्यंत गहरा था। लेकिन क्षमा किया जा सकता है यशोधरा को। क्योंकि बिना पूछे बुद्ध उसे छोड़कर चले गए थे। उसका क्रोध स्वाभाविक ही है। कोई सोच भी नहीं सकता था कि यह घटना घटेगी। बुद्ध ने आनंद से कहा, आनंद, मेरा भिक्षा-पात्र कहां है? राहुल को मेरा भिक्षा-पात्र दे दो और इसे संन्यास में दीक्षित करो। वह यशोधरा तो छाती पीटकर रोने लगी। उसने कहा, यह क्या कर रहे हैं। बुद्ध ने कहा, जिस परम धन को मैंने पाया है, वसीयत में वही मैं अपने बेटे को भी देना चाहता हूं। जिस परम आनंद की यात्रा पर मैं गया हूं और जिन खजानों को मैंने खोज लिया है, वही तो मैं अपने बेटे को भी दे देना चाहता हूं। राहुल दीक्षित कर लिया गया। बारह साल का छोटा-सा लड़का संन्यासी हो गया। बुद्ध को औरों ने भी कहा, ऐसा मत करें। बुद्ध के पिता ने भी कहा कि तू घर छोड़कर गया और जो हमारी आंखों का एकमात्र तारा है, तू उसको भी हटा रहा है। फिर इस राज्य का मालिक कौन होगा तो बद्ध ने कहा कि मैं एक और बडे महाराज्य की खबर लाया हं। यह बहत छोटा राज्य है और इसके लिए उसको छोड़ना बड़ा महंगा सौदा है। मैं एक महाराज्य की खबर लेकर आया हूं और उस महाराज्य का महासम्राट बनाता हूं इसे। पिता ने दुख में ही बुद्ध को कहा कि फिर हमें भी तू दीक्षा दे दे। बुद्ध ने कहा, इससे शुभ और क्या हो सकता है! और अपने पिता को भी दीक्षा दे दी। फिर यशोधरा चिल्लाने लगी, मुझे यहां अकेला किस लिए छोड देते हैं. तो मझे भी दीक्षा दे दें। बद्ध ने कहा. इससे शभ और क्या हो सकता है। फिर वह पूरा घर दीक्षित हो गया। अब यह बुद्ध जैसा व्यक्ति भी जन्म दे रहा है, किसी और महाराज्य में, किसी और जीवन में। इस शरीर की कैद में किसी आत्मा को लाने के लिए बुद्ध और महावीर जैसे व्यक्ति, ज्ञान के बाद राजी नहीं हो सकते। ऐसा ही समझें कि एक जेलखाना है। जेलखाने में रहने वाले लोगों को कुछ भी पता नहीं है कि बाहर भी एक दुनिया है फूलों की, सूरज की, चांद-तारों की, खुले हुए आकाश की, आकाश में उड़ते हुए पक्षियों की। उन्हें कुछ भी पता नहीं है। वे सदा से वहीं हैं। वे वहीं पैदा हुए हैं। फिर एक दिन ऐसा आता है कि एक आदमी जेल की दीवार पर चढ़ कर एक खुला आकाश, चांद-तारे, सूरज, पक्षियों के गीत आदि को देख लेता है। और उस आदमी से उसकी पत्नी कहती है कि और लोग बच्चे पैदा कर रहे हैं, तुम बच्चे पैदा नहीं करोगे? तब वह आदमी कहता है कि इस कारागृह में मैं किसी को भी जन्म न देना चाहूंगा। मेरा बच्चा तो कम से कम इस कारागृह में नहीं हो सकता है। अब अगर जन्म ही देना है तो उस खुले आकाश की यात्रा में जन्म दूंगा। 278 ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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