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लेकिन उस जेल के भीतर कौन समझेगा इस बात को? ये कैदी कहेंगे, पागल हो गए हो, लौट आओ अपने घर। अपने घर मतलब अपनी सेल, अपनी कोठरी। और वह आदमी कितना ही कहे कि चांद, सूरज, फूल वहां होंगे, वे कुछ भी न समझेंगे। क्योंकि उन्होंने न चांद देखा, न सूरज देखा, न फूल देखे। उन्होंने सिवाय अंधकार के और जंजीरों के कुछ भी नहीं देखा है। हो सकता है जैसे हम आज यहां पूछ रहे हैं, वैसे ही वे लोग भी पूछेगे, क्या कोई आदमी कारागृह की दीवालों पर बैठने के बाद एक बार लौटकर बच्चे को जन्म दे सकता है? या कि केवल वे ही लोग बच्चों को जन्म देते हैं जो कभी दीवाल पर चढ़कर नहीं खड़े हुए हैं? ठीक वैसा ही हमारा सवाल है।
बुद्ध और महावीर जिस जगत को, जिस जीवन को, जिस महाजीवन को देख रहे हैं, उस जीवन का हमें कुछ भी पता नहीं। हम इस शरीर में, इस छोटे-से शरीर के कारागृह में बंद हैं। जिंदगी भर इस कारागृह को लिए घूमते रहते हैं। हम सोचते हैं, बड़ा जीवन यहीं है। तो हम सोचते हैं कि इसमें और आत्माओं को जन्म दो न, और अच्छी आत्माओं को लाओ न। बुद्ध और महावीर इस कोशिश में लगे हैं कि यहां से बुरी आत्माओं को भी भेज दें, छुटकारा दिला दें। और हम इस कोशिश में लगे हैं कि और अच्छी आत्माओं को यहां ले आयें। हमारी और उनकी दृष्टि में, हमारे और उनके डायमेंशन में, आयाम में बुनियादी फर्क है। इसलिए हमें खयाल में नहीं आ सकता। ___ ज्ञान को उपलब्ध व्यक्ति जन्म नहीं दे सकता है। नहीं दे सकता है इसलिए कि किसी को कारागृह में डालने की जिम्मेवारी नहीं ले सकता है। हां, वह जन्म दे सकता है किसी और विराट मुक्ति के जीवन में, किसी परम स्वतंत्रता में। लेकिन वह जन्म शरीर का जन्म नहीं, आत्मा का जन्म है। वह जन्म दिखाई पड़नेवाले का जन्म नहीं, अदृश्य का जन्म है। ज्ञात का नहीं, अज्ञात का जन्म है। ___ महावीर और बुद्ध ने ऐसे बहुत जन्म दिए हैं। महावीर के पचास हजार संन्यासी थे। महावीर इनके लिए पिता से क्या कम हैं? निश्चित ही ज्यादा हैं! बुद्ध के हजारों संन्यासी थे। बुद्ध क्या इनके लिए पिता से कम हैं? पिता से बहुत ज्यादा हैं। पिताओं ने क्या दिया है जो इन्होंने दिया है। लेकिन वह जिन्हें मिला है, केवल वे ही जान सकते हैं। हमारी अपनी कठिनाइयां हैं, हमें कुछ भी पता नहीं, इसलिए हम ऐसे सवाल उठा सकते हैं। इसलिए समझ लेना उचित है कि ऐसे सवालों को भी हम समझ लें।
आज के लिए इतना काफी। शेष कल।
तंत्र (प्रश्नोत्तर)
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