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________________ खोलकर सामने भी रख दो तो भी नजर नहीं डालते। दस दिन के बाद उनसे बहुत चर्चा करना चाहो, गंदा मजाक करना चाहो, उन्हें कुछ सुनाई नहीं पड़ता। वे कहते थे, बेकार की बातें मत करो। पंद्रह दिन के बाद उनका सेक्स में कोई भी रस नहीं रह जाता है। तीस दिन पूरे होते-होते, उनको सब तरफ से स्टिमुलेंट दो, सब तरफ से उनको जगाओ, नंगी फिल्में दिखाओ, नंगी तस्वीरें रखो, पोस्टर लगाओ उनके सामने, वे ऐसे बैठे हैं जैसे उन सबसे उन्हें कोई मतलब नहीं। क्या हो गया है ? असल में शरीर तीस दिन में शक्ति को पूरा नहीं कर रहा है। गड्ढे खाली रह गए हैं। चित्त में अब कोई रस नहीं है। फिर खाना दिया जाता है। तीन दिन में फिर गड्ढे भरने लगते हैं। अब रस वापस आ गया है। मैगज़ीन अब जोर से पलटी जाने लगी हैं। सात दिन ठीक भोजन मिला है। अब वे फिर गंदी बातें करने लगे हैं। फिर वे मजाक करने लगे हैं। अब उनकी बातचीत का ज्यादा हिस्सा स्त्रियों के बाबत फिर शुरू हो गया है। पंद्रह दिन ठीक भोजन, और वे वापिस वैसे ही युवक हो गए हैं। और उनको मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि तुम बड़े त्यागी हो गए थे, बड़ी उपेक्षा से भर गए थे। वे कहते हैं, त्यागी कुछ भी नहीं, हम सिर्फ भूखे थे। इसलिए दुनिया में बहत-से त्यागी भूखे रहकर अगर त्यागी बने बैठे हैं तो बहत भूल में मत पड़ना। शरीर सब्स्टीट्यूट नहीं कर रहा है। जो शक्ति खाली रह गयी है, वह खाली रह गयी है। शरीर नहीं भरेगा शक्ति को तो आप बाहर सो जायेंगे। शरीर चौबीस घंटे में आपको वीर्य-ऊर्जा वापस दे देता है। इसलिए आपको लगता है कि क्या खर्च हो गया है, कुछ भी खर्च नहीं हुआ है। लेकिन बड़े मजे की बात है कि चौबीस घंटे खाना-पीना, दुकान, नौकरी, मजदूरी, मेहनत, पढ़ना-लिखना, सब कुछ वीर्य-कणों को पैदा करने के लिए हो रहा है। और इन सबको करने के बाद उन वीर्य-कणों का क्या करना? उन वीर्य-कणों को फेंक देना है और फिर सुबह से उसी सिलसिले में लग जाना है। किसलिए लगें! वीर्य-कण इकट्ठे करने में! अगर बायोलॉजिस्ट से पूछे तो वह कहेगा कि आदमी का कुल फंक्शन इतना है, उसके शरीर का पूरा काम इतना है : मेहनत करे, खाना कमाये, खाना खाये, खाना पचाये, खून बनाये, वीर्य बनाये और वीर्य को फेंक दे और फिर उसी काम में लग जाये। यह कुल जमा आदमी का बायोलॉजिकल सर्किल है। क्या पूरी जिंदगी हम इतने काम के लिए हैं? अगर इस बात को कोई ठीक से समझ ले कि बस इतना ही काम है मेरा, तो जिंदगी में क्रांति घटित हो जाती है। जब वह आदमी सोचता है लौटकर कि यह मुझसे क्या करवाया जा रहा है? यह मुझसे क्या हो रहा है? इतना ही मेरा फंक्शन है! कुल जमा इतनी ही बात है बस! अगर इतनी ही जिंदगी है तो फिर जिंदगी क्या खाक है! फिर कुछ भी नहीं है। नहीं, जिंदगी में और भी द्वार हैं, जो अनजाने और अपरिचित हैं। परंतु हम एक चक्कर में पड़ गए हैं और उसी चक्कर में घूमते हुए नष्ट हो जाते हैं। इस चक्कर से शक्ति बचे तो उस नये द्वार पर भी चोट की जा सकती है। लेकिन यह वीसियस सर्किल तेज है और तेजी तंत्र (प्रश्नोत्तर) 273 www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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