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उसी दिन शुरू होती है जिस दिन काम-ऊर्जा लाभ की दिशा में, ऊपर की दिशा में बढ़ती है। तब आपको पता लगता है कि जिंदगी में कितना नुकसान हुआ है। इस नुकसान को तौलने के लिए थोड़े लाभ के तराजूवाले पलड़े पर भी तो कुछ होना चाहिए। एक ही पलड़ा है हमारे पास, जिसमें हम नुकसान ही रखते चले गए हैं। वही नुकसान, वही नुकसान। उसे लाभ कहिए, नुकसान कहिये, जो कहना है वह कहिए। हमारा कोई दूसरा अनुभव नहीं है। जिंदगी में सारे अनुभव सापेक्ष हैं। ___इसलिए मैं कहूंगा कि मेरी बात खयाल में तभी पूरी आ सकती है जब आपकी जिंदगी में लाभ का कोई कण पैदा हो जाये। तब आप समझेंगे कि नुकसान क्या हुआ है, नहीं तो कैसे समझ सकते हैं कि नुकसान क्या हुआ है। नुकसान ही हुआ है केवल, तो उसी में हम लाभ-हानियां सोच लेते हैं। अगर किसी नुकसान में क्षण भर के लिए जरा ज्यादा सुख मिला हो तो लगता है लाभ हुआ है। और किसी नुकसान में क्षण भर को कम सुख मिला हो तो लगता है नुकसान हुआ है। किसी में जरा ज्यादा देर के लिए संभोग की प्रतीति हुई हो तो लगता है लाभ हुआ। और किसी में नहीं प्रतीत हुई हो तो लगता है नुकसान हुआ। ये सब नुकसान हैं। इन्हीं में हम तौल कर लेते हैं। ये सब हारे हुए बटखरे हैं हमारे, जिनको हम तौल लेते हैं।
लेकिन जब पहली दफा जिंदगी में ऊर्जा ऊपर उठती है तब पता चलता है कि इस जन्म में ही नहीं, अनंत जन्मों में कितना अनंत नुकसान हुआ है। उसका हमें कोई अनुभव तब तक नहीं हो सकता जब तक विपरीत तौल का अनुभव न हो जाये।
तो जब मैं कह रहा हूं कि दोनों ही व्यक्ति ऊर्जा खोते हैं, तो मैं किन्हीं दस लाख के लाभ हो सकते हैं उस खयाल से कह रहा हूं। मगर उन्हें कुछ पता नहीं है। उन्हें चार लाख में भी लाभ मालूम पड़ रहा है, तब बात दूसरी है। छह लाख की हानि हो रही है। छह लाख की चाहे दस लाख की हो रही है, अरबों की हो रही है, यह तो तब पता चले जब लाभ का द्वार खुल जाये।
इसे थोड़ा प्रयोग कर के देखें। ऊर्जा को थोड़ा ऊपर जाने दें, फिर आप कहेंगे कि क्या हुआ है। समस्त जीवन सापेक्षताओं में है। और जब मैं कहता हूं कि दोनों ऊर्जा खोते हैं, तो दोनों ही संभोग के बाद सोचें तो उनको पता चल जाएगा। कुछ समय के बाद ऊर्जा फिर वापस भर दी जाएगी। शरीर तो एक यंत्र है। आप ऊर्जा खत्म करते हैं शरीर ऊर्जा पैदा करके फिर भर देता है। अगर शरीर ऊर्जा न भरे रोज तब आपको पता चलेगा कि ऊर्जा खोयी है। असल में ऐसा है कि वर्षा हो रही है। आप गड्ढे से पानी निकाल लेते हैं। गड्ढा फिर भर जाता है। आप कहते हैं, कौन कहता है कि पानी निकाला, गड्ढा फिर भरा हुआ है। ___ अमरीका की कैलिफोर्निया युनिवर्सिटी में एक छोटा-सा प्रयोग किया गया। तीस युवकों को तीस दिन के लिए भूखा रखा गया। तीन दिन के बाद ही उनका जो सेक्स अट्रैक्शन
और सेक्स अपील है वह खत्म होनी शुरू हो गई। तीन दिन के बाद मनोवैज्ञानिकों ने देखा कि नंगी तस्वीरों की मैगजीनें पड़ी रहीं, पर अब वे कम उलटाते हैं। सात दिन के बाद मैगजीन
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ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
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