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उपलब्ध हो, अगर उसका भी रजपात हो तो शक्ति क्षय होगी। शक्ति क्षय होनी ही है। शक्ति क्षय करने में ही तो रस आ रहा है। इसलिए आमतौर से स्त्री को संभोग में उतना रस नहीं होता है जितना पुरुष को होता है। क्योंकि किन्से ने अभी दस साल की मेहनत के बाद जो रिर्पोट दी है, वह यह कहती है कि सौ में से सत्तर प्रतिशत स्त्रियों को संभोग के शिखर की कोई अनुभूति नहीं है। बच्चे पैदा हो जाते हैं, लेकिन काम-ऊर्जा के जो स्खलन का अनुभव है, वह स्त्री को मुश्किल से हो पाता है। इसलिए स्त्रियां बहुत जल्दी अरुचि से भर जाती हैं। पुरुष अरुचि से नहीं भरता। रोज-रोज उसकी रुचि फिर वापस लौट आती है।
यह जो मैंने कहा कि दोनों की शक्ति क्षीण होती है। शक्ति तो क्षीण होती ही है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि मैं यह कह रहा हूं कि शक्ति को जबरदस्ती दबाकर कोई बड़ा शक्तिशाली बन जाएगा। अगर जबरदस्ती शक्ति को दबाया तो दबाने में भी शक्ति क्षीण होती है। अगर जबरदस्ती दबाया, तो जितना भोगने में क्षीण होती है कभी तो उससे भी ज्यादा दबाने में क्षीण होती है। उसके दो कारण हैं, वह दबाई हुई शक्ति आज नहीं, कल निकल जाएगी, अनेक मार्ग निकलने के खोज लेगी। वह सपने में बह जाएगी। और दबाने में जो शक्ति लगायी थी, वह व्यर्थ हो जाएगी।
इसलिए दबाने के पक्ष में मैं नहीं हूं। जो चिकित्सक या जो शरीर-शास्त्री इस बात को कहते हैं कि यह स्वाभाविक है, स्वस्थ है, उनका कुल प्रयोजन इतना है कि कोई आदमी दबाने के पागलपन में न पड़े। दबायेगा तो विकृत हो जाएगा, परवर्ट होगा, और उपद्रव पैदा हो जाएंगे। नहीं, दबाने से शक्ति नहीं बचेगी, दबाने से शक्ति और भी गलत, अस्वाभाविक मार्ग लेगी, जो कि और भी घातक हो सकते हैं। ___ मैं दबाने के लिए नहीं कह रहा हूं। मैं यह कह रहा हूं कि और भी इस शक्ति की गति के मार्ग हैं। और अगर एक बार उस मार्ग का दर्शन हो जाये तब आपको पता चलेगा कि कितनी शक्ति आपने खोयी है। क्योंकि हमें पॉजिटिव उपलब्धि का कोई पता ही नहीं है। इसका हमें पता चले तभी हम तौल कर सकते हैं। ___ मैं एक घर में ठहरा था। जिन मित्र के घर ठहरा था वे परेशान थे और नींद आनी बंद हो गई थी। तो मैंने पूछा, बात क्या है? उन्होंने कहा, बहुत नुकसान लग गया है। कोई पांचसात लाख रुपए का नुकसान लग गया। मैंने उनकी पत्नी से पूछा कि मामला क्या है कि इतना नुकसान और इतने परेशान! तो उसने कहा, सच पूछिए तो मेरी समझ में नहीं आता कि नुकसान लग गया है। असल बात यह है कि दस लाख कमाने की उनकी आशा थी किसी काम में, लेकिन चार ही लाख कमा पाए। तो वे पांच-सात लाख रुपए का नुकसान बता रहे हैं। मुझे तो दिखता है कि चार लाख का लाभ हुआ। लेकिन उन्हें लगता है कि पांच-सात लाख रुपए का नुकसान हो गया। अब कौन उनको समझाये! ___ असल में तब तक आपको पता नहीं लगेगा कि नुकसान हो रहा है जब तक कि आपको किसी लाभ की दिशा का पता न हो। तो तौलेंगे कैसे? हिसाब क्या है? मापदंड क्या है? नुकसान ही नुकसान हुआ है जिंदगी में। तौल के लिए कोई उपाय भी तो नहीं है। तौल तो
तंत्र (प्रश्नोत्तर)
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