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जब मैं यह कह रहा हूं कि स्त्री और पुरुष दोनों ही शक्ति खोते हैं, तो दो बातें समझ लेनी जरूरी हैं कि मैं क्या कह रहा हूं। एक तो मैं यह कह रहा हूं कि जिस शक्ति की मैंने कल बात की, काम-ऊर्जा की-जीव-ऊर्जा की नहीं, बायोलॉजिकल नहीं, साइकिक-उस काम-ऊर्जा को तो दोनों खोते हैं। दोनों ही खोते हैं। इसे कुछ समझने में कठिनाई नहीं पड़ेगी। इसे तो हम मेडिकली भी जांच-परख कर सकते हैं। __काम के क्षण में श्वास तीव्र हो जाएगी। ठीक वैसे ही जैसे आदमी सीढ़ियों पर चढ़ता हुआ हांफ रहा हो। ब्लड प्रेशर बढ़ जाएगा, पसीना छूट जाएगा, काम के क्षण के बाद आदमी थक जाएगा। घंटे भर में वापस उसे संभोग करने को कहें, तो पता चल जाएगा कि शक्ति मिली कि घटी। अब उसको फिर चौबीस घंटे, अड़तालीस घंटे लगेंगे। एक आदमी के बाबत किसी ने खबर दी है, पता नहीं कहां तक सच है, कभी रेयर घटनाएं होती हैं, कि वह एक रात में बारह संभोग कर सका। लेकिन इस तरह की कहानियां अक्सर तो अलीबाबा चालीस चोर वाली कहानियां होती हैं। यह संभव नहीं है। ___अगर आदमी शक्ति इकट्ठा करता है तब तो पहले संभोग के बाद दूसरे संभोग में उसकी शक्ति बढ़ जानी चाहिए। लेकिन पहले संभोग में जितना वीर्य-कण वह छोड़ता है, अगर दोचार घंटे के भीतर दूसरा संभोग करे तो मात्रा आधी हो जाएगी। और तीसरे संभोग में मात्रा और गिर जाएगी और चौथे संभोग में और कम हो जाएगी। चौथे संभोग में आदमी पाएगा कि वह वद्ध हो गया है, उसमें अब कोई शक्ति नहीं है।
स्त्री के संबंध में थोड़ी भ्रांति होती है, क्योंकि स्त्री के पास पैसिव सेक्स है। शक्ति वह भी खोती है, लेकिन स्त्री आक्रामक नहीं है। स्त्री स्वभावतः पैसिविटि में कम शक्ति खोती है। आक्रमण में शक्ति ज्यादा खोती है। पुरुष पहल करता है, आक्रमण करता है। स्त्री आक्रमण नहीं करती, सिर्फ आक्रमण झेलती है। कहना चाहिए सिर्फ डिफेंस करती है, सिर्फ रक्षा करती है। स्त्री की शक्ति पुरुष से कम समाप्त होती है।
इसलिए स्त्री-वेश्याएं पैदा हो सकीं। पुरुष-वेश्याएं पैदा होने में बहुत कठिनाई है। अभी इंग्लैंड और फ्रांस में कुछ पुरुष-वेश्याएं पैदा हुई हैं। लेकिन उनके दाम बहुत ज्यादा हैं। क्योंकि एक पुरुष-वेश्या एक रात में एक ही बार अपने को बेच सकता है। वैश्य नहीं कह रहा हूं, कहीं कोई नाराज न हो जाए। इसलिए पुरुष-वेश्या कह रहा हूं। स्त्री पैसिव है, लेकिन वह भी शक्ति खोती है। __ दूसरा कारण, स्त्री के बाबत इसलिए पता नहीं चलता कि स्त्री अक्सर आरगाज्म को उपलब्ध नहीं होती। असल में पुरुष और स्त्री की पीक्स भिन्न-भिन्न हैं। स्त्री के पास जो काम की व्यवस्था है, वह बहुत धीमी विकसित होती है। अक्सर तो ऐसा होता है कि पुरुष काम के क्षण के बाहर हो जाता है और स्त्री किसी ऊंचाई पर पहुंचती नहीं। उसमें कुछ क्षीण नहीं होता। स्त्री और पुरुष की जो गति है संभोग के क्षण में, वह समान नहीं है।
इसलिए अक्सर स्त्री का कुछ भी क्षीण नहीं होता। पुरुष जल्दी से क्षीण होकर संभोग के बाहर हो जाता है। इसलिए स्त्री को भ्रम हो सकता है। लेकिन अगर स्त्री को भी आरगाज्म
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ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
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