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________________ सामान्य मान्यताएं ऐसी ही होती हैं। जैसे सामान्य मान्यता यह है कि सूरज उगता है; पृथ्वी चपटी है। सामान्य मान्यताएं अक्सर ही गलत होती हैं। क्योंकि सामान्य का अर्थ है ऊपर से देखी गई, जिसमें गहरे नहीं जाया गया। सूरज उगता दिखाई पड़ता है। अब हम भलीभांति जानते हैं कि सूरज नहीं उगता, नहीं डूबता। लेकिन सूर्योदय और सूर्यास्त शब्दों से छुटकारा मनुष्य का कभी भी नहीं हो सकता है। ये शब्द जारी रहेंगे। जमीन चपटी दिखाई पड़ती है, कहीं भी गोल दिखाई नहीं पड़ती। हजारों-लाखों साल तक आदमी मानता चला आया कि चपटी है। आज गोल मानना पड़ता है तो कठिनाई होती है, सामान्य मन को बड़ी तकलीफ होती है कि गोल कैसे मानें, जब दिखाई चपटी पड़ती है। सामान्य मान्यताएं अक्सर गलत होती हैं, क्योंकि सामान्य मान्यताएं दो चीजों पर आधारित होती हैं। एक, जैसा ऊपर से दिखाई पड़ता है। और दूसरा, जैसा हम मानना चाहते हैं वैसा हम मान लेते हैं। सामान्यतया हम सत्य को नहीं मानना चाहते। हम जो मानना चाहते हैं, उसे सत्य बना लेते हैं। आदमी रेशनल प्राणी कम, रेशनलाइजिंग प्राणी ज्यादा है। ऐसा नहीं कि वह बहुत बुद्धिमत्ता से विचार करता है, बल्कि ऐसा कि वह जो भी विचार करता है, उसको बुद्धिमत्ता की शकल दे देता है। यह ज्यादा आसान पड़ता है। हम संभोग, यौन, काम को भोगना चाहते हैं तो रेशनलाइजेशन जोड़ते हैं। स्त्री शक्तिशाली होगी, पुरुष शक्तिशाली होगा, स्वस्थ होगा, मेडिकली ठीक होगा, ये सारी बातें हम जोड़ लेंगे। और अगर हम इनकार करना चाहेंगे तो हम सारी विरोधी बातें जोड़ लेंगे। और जमीन पर सामान्य आदमी सभी स्थितियों से गुजर चुका है। ___अगर मध्य युग के यूरोप की किताबें देखें डॉक्टरों की भी, तो उन्होंने जो बातें कही हैं वह आज का डॉक्टर बिलकुल नहीं कह रहा है। मध्य-युग के डॉक्टर्स कह रहे हैं, बड़ा खतरनाक है काम, क्योंकि मध्य-युग का आदमी काम-विरोधी रुख अख्तियार किए हुए था। आज का डॉक्टर कह रहा है कि बिलकुल खतरनाक नहीं है, एकदम शुभ है, क्योंकि आज का आदमी शुभ मानना चाह रहा है। कोई आश्चर्य नहीं कि स्थिति कल फिर बदल जाए। फैशन विचार में भी बदलते रहते हैं। इस जमीन पर आदमी ने हजार बार उन्हीं बातों को लौटा लिया है, जिन बातों को उसने छोड़ा है या जिनसे ऊब गया है। फिर उनसे विपरीत बातों को पकड़ लेता है, फिर उनसे भी ऊब जाता है। फिर उनसे विपरीत बातों को पुनः पकड़ लेता है। रोज आदमी गये-बीते सत्यों को फिर से जिंदा कर लेता है, फिर उनसे भी ऊब जाता है। और मजा यह है कि हर युग के बुद्धिमान आदमी सामान्य आदमी की बात का समर्थन कर देते हैं। क्योंकि उनके बुद्धिमान बने रहने के लिए भी यह जरूरी है कि सामान्य आदमी के सत्यों को वे सत्य स्वीकार करें। दुनिया में ऐसे नासमझ लोग कम ही होते हैं जो सामान्य आदमी की मान्यताओं को चुनौती दें। यद्यपि ऐसे ही लोग इस जगत में थोड़े-बहुत सत्य को खोजने का कारण बनते हैं। लेकिन साधारणतः हम सब स्वीकृति देते हैं जो सामान्य आदमी मानता है। सामान्य आदमी की मान्यता मन को समझाने की मान्यता है। तंत्र (प्रश्नोत्तर) 269 www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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