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________________ प्रत्येक संभोग की घटना मरने की घटना है। भीतर प्रत्येक संभोग की घटना अमृत के आस्वाद की घटना है। वह जो कबीर चिल्लाते हैं कि अमृत बरस रहा है तालू से चिल्लाते हैं कि साधुओ, अमृत की वर्षा हो रही है, वह कुछ बाहर नहीं बरस रहा है कहीं । वह भीतर के चक्रों पर जब जीवन ऊर्जा चढ़ती है तो अमृत का स्वाद बरसना शुरू हो जाता है। अब अमृत कोई चीज नहीं है कि बरसेगी । मृत्यु कोई चीज है कि बरसती है ! मृत्यु एक घटना है, ऐसे ही अमृत भी एक घटना है, वह अंतर्घटना है। और दूसरा भी पहलू आपसे कह दूं, कि जैसे दूसरे के साथ संभोग करके हम दूसरे व्यक्ति को जन्म देते हैं, ऐसे ही स्वयं के चक्रों पर संभोग स्वयं का नया जन्म बनता है। भीतर नया व्यक्ति पैदा होने लगता है । रोज नया व्यक्ति पैदा होने लगता है। असल में जिसे हम 'द्विज' कहते थे, वह उस व्यक्ति का नाम था जिसने दूसरा जन्म लिया । एक जन्म तो मां-बाप से मिलता है । वह जन्म दूसरों के द्वारा मिला है। एक और जन्म है जो स्वयं से मिलता है। वह तंत्र का ही जन्म है। ट्वाइस बार्न । इसलिए द्विज कहेंगे उस आदमी को जो अपने भीतर के चक्रों पर जीवन-ऊर्जा को लेकर नये जन्म को उपलब्ध हो गया है। बाहर के सब जन्मों के पीछे मृत्यु है । भीतर के सब जन्मों के पीछे अमृत है। तंत्र की यह रूप-रेखा खयाल में आ जाये तो काम - ऊर्जा को ब्रह्मचर्य तक पहुंचा देने जरा भी कठिनाई नहीं है। लेकिन तंत्र की यह दृष्टि समझ में आना कठिन है, क्योंकि हम सबके मन में काम-ऊर्जा के प्रति शत्रुता के भाव बहुत गहरे हालांकि शत्रुता से हम शत्रु नहीं हो जाते। शत्रुता पाल-पाल कर रोज मित्रता में उतरते चले जाते हैं। इधर गाली देते रहते हैं, उधर भोगते चले जाते हैं। इधर निंदा करते चले जाते हैं, उधर चरण उठाये चले जाते हैं। वही पेंडुलम बायें से दायें, दायें से बायें घूमता चला जाता है। जिस व्यक्ति को भी काम-ऊर्जा को ऊपर ले जाना है, उसे जानना चाहिए कि काम ऊर्जा भी परमात्मा की ही ऊर्जा है, इसलिए निंदा व्यर्थ है, इसलिए भोगने की बात व्यर्थ है। उसे जानने की बात सार्थक है, जीने की बात सार्थक है । न भोग में जीना है, न त्याग में जीना है । काम - ऊर्जा जितनी भीतर जाये उतनी जीवंत होती चली जाती है। और जितनी ऊपर चढ़े उतना मेरे जीवन का हिस्सा होती चली जाती है। और जो भीतर एम्पटीनेस का अनुभव होता है, रिक्तता का, खालीपन का, जैसे ही काम - ऊर्जा भीतर दौड़ती है वह भर जाती है, फुलफिलमेंट हो जाता है। आदमी कह पाता है कि अब मैं भरा-पूरा हूं। अब कोई जगह खाली नहीं है। ओशो, आपने अभी-अभी कहा है कि संभोग में स्त्री और पुरुष दोनों की ऊर्जा क्षीण होती है, लेकिन सामान्य मान्यता यह है कि संभोग के वीर्य से स्त्री को पुष्टि मिलती है। कृपया इसे स्पष्ट करें। ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया 268 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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