SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महावीर हवा की तरह हो गये, तो घर के लोगों ने कहाः अब बेकार हम मुट्ठी बांध रहे हैं, वह आदमी जा चुका। और जितनी हमारी मुट्ठी बंधती है उतना वह आदमी बाहर होता चला जा रहा है। हम न रोकें। अब वह है ही नहीं। अब रोकना फिजूल ही है। रोकना भी तभी तक उचित है जब तक कोई रुकता हो, या न रुकता हो। दो में से कुछ भी करता हो तो रोकने का अर्थ है। अब तो वह आदमी है ही नहीं! तो घर के लोगों ने महावीर से कहा कि अब आप जाना चाहें तो जा सकते हैं। और उन्होंने कहा, अब तो बहुत देर हो चुकी है! मैं तो जा चुका हूं! अब मैं यहां नहीं हूं। हिंसा की पहली गहरी चोट इन दो बातों से है जो खयाल में ले लेनी चाहिए। क्या दूसरा है? जब तक दूसरा है तब तक हिंसा जारी रहेगी। और दूसरे के कारण आप एक झूठा मैं, एक झूठा अहंकार पैदा करेंगे, जो आप नहीं हैं। लेकिन दूसरों से काम चलाने के लिए पैदा करना पड़ेगा। अहंकार कामचलाऊ अस्तित्व है। हमें अपना कोई पता नहीं है कि मैं कौन हूं? लेकिन हम कहते हैं कि मैं हूं। जिसे यह भी पता नहीं है कि मैं कौन हूं, वह भी कहे मैं हूं, यह जरा ज्यादती है। क्योंकि होने का दावा तभी किया जा सकता है जब कौन होने का पता हो। मुझे पता नहीं है कि मैं कौन हूं? लेकिन मैं कहता हूं कि मैं हूं। यह मेरा 'मैं' कहां से आया है? यह कहां से पैदा हुआ? अगर यह मेरे ज्ञान से पैदा हुआ है मैं, तब तो बड़े मजे की बात है, क्योंकि जिन्होंने भी स्वयं को जाना, उन्होंने मैं कहना बंद कर दिया। जिन्होंने स्वयं को पाया, उन्होंने कहा, हम तो नहीं हैं। जिन्होंने स्वयं को पाया, उन्होंने स्वयं को खो दिया। जिन्होंने स्वयं को नहीं पाया, वे कहते हैं, मैं हूं। यह मैं कहां से आया है? यह आपके भीतर से नहीं आया है। इसे कहना चाहिए सोशल बाई-प्रॉडक्ट है। यह समाज ने पैदा करवा दिया है। वह जो दसरे हैं. उनके साथ व्यवहार करने के लिए आपको एक शब्द खोज लेना पड़ा है कि मैं हूं। जैसे हमने नाम खोज लिया है। बच्चा पैदा होता है बिना नाम के, नेमलेस। फिर हम उसको एक नाम दे देते हैं-राम, कृष्ण, कुछ भी नाम दे देते हैं। वह नाम बच्चे के भीतर से नहीं आता, समाज उसे दे देता है। फिर वह जिंदगी भर राम बना रहता है। वह इस शब्द के लिए लड़ेगा, अगर किसी ने गाली दे दी तो लड़ेगा। रामतीर्थ अमरीका में थे। कुछ लोगों ने गालियां दीं, तो वे हंसते हुए घर लौटे। और जब लोगों को पता चला, उनके मित्रों को, कि उनको गालियां दी गईं तो वे बहुत नाराज हुए। रामतीर्थ को हंसते हुए देख कर उन्होंने पूछा कि आप पागल तो नहीं, आप हंसते क्यों हैं? गालियां दी गई हैं। रामतीर्थ ने कहा, मुझे कोई गाली देता तो मैं कोई जवाब देता। वे लोग राम को गाली दे रहे थे। राम से अपना क्या लेना-देना है? इस नाम के बिना भी मैं हो सकता था। दूसरे नाम का भी हो सकता था। तीसरे नाम का भी हो सकता था। कोई ए बी सी डी को गाली दे दे, इससे लेना-देना क्या? जब वे राम को गाली दे रहे थे तब हम भी भीतर बड़े खुश हो रहे थे, कि देखो राम, कैसी गालियां पड़ रही हैं, आया मजा? बनोगे राम तो गाली पड़ेगी। उन्होंने नाम दिया, उन्होंने गालियां दीं। हम बाहर थे। नाम भी उनका, गाली भी ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया 16 ज्यों कीयो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy