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सब तो झूठ है! संन्यास लेकर रहूंगा। तुम रोकने वाली कौन हो? बंधन कैसा? लेकिन नहीं, महावीर चुपचाप लौट गये। मां भी हैरान हुई होगी, क्योंकि ऐसा संन्यासी, जो एक दफे कहे कि संन्यास लेना चाहता हूं और मां कह दे, पिता कह दे, पत्नी कह दे कि नहीं मुझे बहुत दुख होगा, और लौट जाये! ऐसा आदमी कभी संन्यासी हो सकता है? कभी नहीं हो सकता। होने की जरूरत भी नहीं है। ऐसा आदमी संन्यासी है!
मां मर गई। पिता मर गये। मरघट से लौट रहे हैं महावीर। अपने बड़े भाई से कहा कि बात हुई थी माता-पिता से, तो वे बोले थे जब तक वे हैं तब तक संन्यास न लूं, उन्हें दुख होगा। अब संन्यास ले सकता हूं? घर लौट रहे हैं मरघट से! भाई ने कहा, तुम पागल हो गये हो? मां चली गई, पिता चले गये, हम अनाथ हो गये, और तुम भी छोड़ कर चले जाओगे? ऐसा दुख मैं न सह सकूँगा। महावीर चुप हो गये। फिर उन्होंने दुबारा बात न उठायी संन्यास की। बड़े अजीब संन्यासी रहे होंगे। इतना भी दुख दूसरे को पहुंचे यह भी अर्थहीन मालूम हुआ होगा। और ऐसे मोक्ष को भी लेकर क्या करेंगे जिसमें किसी को दुख देकर जाना पड़ता हो। रुक गये। ___ लेकिन एक अजीब घटना घटी उस घर में। ऐसी घटना शायद पृथ्वी पर और कहीं कभी भी नहीं घटी। एक अजीब घटना घटी। वर्ष-दो वर्ष में घर के लोगों को ऐसा लगने लगा कि महावीर हैं या नहीं, यह संदिग्ध हो गया! थे घर में-उठते थे, बैठते थे, आते थे, जाते थे, खाते थे, पीते थे, सोते थे-मगर घर के लोगों को संदेह पैदा होने लगा कि वह हैं या नहीं। उनकी उपस्थिति, अनुपस्थिति जैसी हो गई। उनका होना, न होने जैसा हो गया।
असल में दूसरे के प्रति जो दूसरे का बोध है अगर खो जाये तो दूसरे आदमी की उपस्थिति का पता चलना मुश्किल होने लगेगा। हमें अपनी उपस्थिति का पता करवाना पड़ता है। हजार ढंग से हम करवाते हैं। अगर घर में पति आता है तो उसकी चाल से खबर करवाता है कि आ गया। उसकी आंख से खबर करवाता है कि मैं हूं। और मैं कौन हूं यह साफ होना चाहिए। शिक्षक क्लास में आता है तो खबर करवा देता है। गुरु शिष्यों के बीच में आता है तो सब ढंग, सारी व्यवस्था, खबर करवा देती है कि जानो कि मैं हूं।
महावीर अनुपस्थित जैसे हो गये। वे न किसी को देखते, न वे किसी को दिखाई पड़ते, ऐसे हो गये। वे चुपचाप घर में रहने लगे, चुपचाप गुजरने लगे। न वे किसी को बाधा देते, न किसी की बाधा लेते। वे एक अर्थ में, जिसको जीवित मृत्यु कहें, उसमें प्रवेश कर गये। घर के लोगों ने एक दिन बैठक की, और सबने कहा, अब उन्हें रोकना फिजूल है। क्योंकि वे हैं ही नहीं, रोकते किसको हो? हवा को मुट्ठी बांध कर रोका जा सकता है? पत्थर को रोका जा सकता है। पत्थर को मट्टी बांध कर रोका जा सकता है. क्योंकि पत्थर है. बहत मजबूती से है। पत्थर कहता है, मैं हूं। लेकिन हवा को मुट्ठी बांध कर रोको तो जितनी थी वह भी बाहर निकल जाती है, क्योंकि हवा है ही नहीं। पत्थर के अर्थों में नहीं है। इसलिए हवा को फेंक कर मारा नहीं जा सकता किसी को। पत्थर को फेंक कर मारा जा सकता है। हवा का अस्तित्व बहुत नॉन-वायलेंट है। पत्थर का अस्तित्व बहुत वायलेंट है।
अहिंसा
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