________________
14
अच्छी बातें कर रहा है, कह रहा है, आप कुशल से तो हैं; लेकिन उसका देखना...।
जैसे ही दूसरा भीतर आता है - ही हैज मेड ग्रू द अदर । जैसे ही कोई कमरे में भीतर आया उसने आपको भी दूसरा बना दिया। हिंसा शुरू हो गई। अब उसकी आंख, उसका निरीक्षण, उसका देखना, उसका बैठना, उसका होना, उसकी प्रेजेंस, हिंसा है। अब आप डर गये, क्योंकि हम सिर्फ हिंसा से डर जाते हैं। अब आप भयभीत हो गये। अब आप संभल कर बैठ गये। आप अपने बाथरूम में और तरह के आदमी होते हैं, आप अपने बैठकखाने में और तरह के आदमी हो जाते हैं। क्योंकि बैठकखाने में हिंसा की संभावना है। बैठकखाना वह जगह है जहां हम दूसरों की हिंसा को झेलते हैं। जहां हम दूसरों का स्वागत करते हैं, जहां हम दूसरों को निमंत्रित करते हैं ।
अहिंसात्मक ढंग से हमने बैठकखाना सजाया है। इसलिए बैठकखाना हम खूब सजाते हैं कि दूसरे की हिंसा कम से कम हो जाये । वह सजावट दूसरे की हिंसा को कम कर दे। इसलिए बैठकखाने के चेहरे हमारे मुस्कुराते होते हैं। क्योंकि मुस्कुराहट दूसरे की हिंसा के खिलाफ आरक्षण है। अच्छे शब्द बोलते हैं बैठकखाने में, शिष्टाचार बरतते हैं, सभ्यता बरतते हैं। यह सब इंतजाम है, यह सब सिक्योरिटी और सेफ्टी मेजर्स हैं कि दूसरे आदमी की हिंसा को थोड़ी कम करो।
अगर आप भी गाली देंगे तो दूसरे की हिंसा को प्रबल होने का मौका मिलेगा। आप कहते हैं : बड़ी कृपा की कि आप आये ! अतिथि तो भगवान है ! विराजिये ! तो उस दूसरे की हिंसा को आप कम कर रहे हैं। अब उसे हिंसक होने में कठिनाई पड़ेगी। दूसरा भी आपकी हिंसा को कम कर रहा है। इसलिए जब दो आदमी पहली दफे मिलते हैं तब उनके बीच बड़ा शिष्टाचार होता है। तीन-चार घंटे के बाद शिष्टाचार गिर जाता है। तीन-चार दिन के बाद समाप्त हो जाता है। तीन-चार महीने के बाद वे एक-दूसरे को गाली देने लगते हैं। हालांकि कहते हैं, प्रेम में दे रहे हैं, दोस्ती में दे रहे हैं !
पहले मिलते हैं तो कहते हैं, 'आप', दो-तीन महीने के बाद मिलते हैं तो कहते हैं, 'तू' । यह बात क्या हो गई तीन महीने में ? असल में अब दोनों की हिंसा सेटेल्ड, व्यवस्थित हो गई। अब इतना ज्यादा सुरक्षा का इंतजाम करना जरूरी नहीं है।
दूसरे की मौजूदगी भी हिंसा बन जाती है। आपके लिए ही नहीं, आपकी मौजूदगी भी दूसरे के लिए हिंसा बन जाती है।
महावीर की जिंदगी में एक बहुत अदभुत घटना है। महावीर संन्यास लेना चाहते थे। तो उन्होंने अपनी मां से कहा कि मैं जाऊं संन्यास ले लूं? उनकी मां ने कहा, मेरे सामने दुबारा यह बात मत कहना। जब तक मैं जिंदा हूं तब तक संन्यास नहीं ले सकते। मुझ पर बड़ा दुख पड़ जायेगा। महावीर लौट गये।
मां ने न सोचा होगा, क्योंकि आमतौर से संन्यासी इतने अहिंसक नहीं होते कि इतनी जल्दी लौट जायें। अगर हिंसक वृत्ति होती महावीर की तो और जिद पकड़ जाते । कहते कि नहीं, लेकर ही रहूंगा। यह संसार तो सब माया-मोह है! कौन अपना ? कौन पराया? यह
ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org