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________________ रामकृष्ण एक दिन गंगा पार कर रहे हैं। बैठे हैं नाव में। अचानक चिल्लाने लगते हैं जोर से, कि मत मारो, मत मारो, क्यों मुझे मारते हो? पास, आस-पास बैठे लोग कोई भी उनको नहीं मार रहे हैं। सब भक्त हैं, उनके पैर छूते हैं, पैर दबाते हैं, उनको कोई मारता तो नहीं। सब कहने लगे, आप क्या कह रहे हैं? कौन आपको मार रहा है? रामकृष्ण चिल्लाये जा रहे हैं। उन्होंने पीठ उघाड़ दी। पीठ पर देखा तो कोड़े के निशान हैं। खून झलक आया है। सब बहुत घबड़ा गये। रामकृष्ण से पूछा, यह क्या हो गया? किसने मारा आपको? रामकृष्ण ने कहा, वह देखो, वे मुझे मार रहे हैं। __उस किनारे पर मल्लाह एक आदमी को मार रहे हैं कोड़ों से, और उसकी पीठ पर जो निशान बने हैं वे रामकृष्ण की पीठ पर भी बन गये। ठीक वही निशान। और जब तट पर उतर कर भीड़ लग गई है और दोनों के निशान देखे गये हैं तो तय करना मुश्किल हो गया कि कोड़े किसको मारे गये? ओरिजिनल कौन है ? रामकृष्ण को चोट ज्यादा पहुंची है मल्लाह से। निशान वही हैं, चोट ज्यादा है। क्योंकि मल्लाह तो विरोध भी कर रहा होगा भीतर से, रामकृष्ण ने तो पूरा स्वीकार ही कर लिया! चोट ज्यादा गहरी हो गई। लेकिन रामकृष्ण के मुख से जो शब्द निकला—'मुझे मत मारो', इसका मतलब समझते हैं? एक शब्द है हमारे पास, सिम्पैथी, सहानुभूति। यह सहानुभूति नहीं है। सहानुभूति हिंसक के मन में होती है। वह कहता है, मत मारो उसे। दूसरे को मत मारो। सहानुभूति का मतलब है कि मुझे दया आती है। लेकिन दया सदा दूसरे पर आती है। यह सहानुभूति नहीं है, यह समानुभूति है, इम्पैथी है। सिम्पैथी नहीं है। यहां रामकृष्ण यह नहीं कह रहे हैं कि उसे' मत मारो। रामकृष्ण कह रहे हैं 'मुझे' मत मारो-यहां दूसरा गिर गया! असल में दूसरे से जो हमारा फासला है वह शरीर का ही फासला है, चेतना का कोई फासला नहीं। चेतना के तल पर दो नहीं हैं। हम दूसरे को बचायें तो वह अहिंसा नहीं हो सकती। हम दूसरे को बचायें, तो वह भी हिंसा ही है। जिस दिन हम ही रह जाते हैं, और बचने को कोई भी नहीं रह जाता, उस दिन अहिंसा फलित होती है। इसलिए अहिंसा के बाबत इस गहरी हिंसा को समझ लेना जरूरी है, कि वह जो दूसरा है उससे छुटकारा कैसे होगा। वह साञ ठीक कहता है कि द अदर इज़ हेल, पर ज्यादा अच्छा होगा कि सार्च के वचन में थोड़ा फर्क कर दिया जाये-द अदर इज़ नाट हेल, द अदरनेस इज़ हेल। दूसरा नहीं है नर्क, दूसरापन। दूसरापन गिर जाये तो दूसरा भी दूसरा नहीं है। ___ महावीर की अहिंसा को नहीं समझा जा सका, क्योंकि हम हिंसकों ने महावीर की अहिंसा को हिंसा की शब्दावली दे दी। हमने कहा, दूसरे को दुख मत दो। लेकिन ध्यान रहे जब तक दूसरा है तब तक दुख जारी रहेगा। चाहे उसकी छाती में छुरा भोंको और चाहे उसे दूसरे की नजर से छुरा भोंको, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। __क्या आपको खयाल है कि आप कमरे में अकेले बैठे हों और कोई भीतर आ जाये तो आप वही नहीं रह जाते जो आप अकेले थे। क्योंकि दसरे ने आकर हिंसा शरू कर दी। उसकी आंख, उसकी मौजूदगी! वह आपको मार नहीं रहा है, आपको चोट नहीं पहुंचा रहा है, बहुत अहिंसा 13 www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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