________________
प्रतिपल आगे-पीछे हो रही है। अगर ऊर्जा खड़ी हो जाए, न भीतर जाए, न बाहर जाए, तो एक क्षण को ऐसा दिखाई पड़ेगा कि ऊर्जा खड़ी हो गई, क्योंकि उसका बाहर जाना तत्काल बंद हो जायेगा। आप कुछ न करें, सिर्फ गवाह बने रहें, तो आप पाएंगे कि ऊर्जा ने भीतर जाना शुरू कर दिया। ऊर्जा जीवंत है, रुक नहीं सकती, कहीं जाएगी ही। अगर नीचे न जाएगी तो ऊपर जाएगी। ___ इसलिए तंत्र कहता है, बाहर ले जाने के लिए मनुष्य को बड़े उपाय करने पड़ते हैं। भीतर ले जाने के लिए सिर्फ निरुपाय हो जाना पड़ता है। बाहर ले जाने के लिए बड़े एफर्ट करने पड़ते हैं, क्योंकि बाहर ले जाना अस्वाभाविक है। भीतर ले जाने के लिए उपाय नहीं करने पड़ते हैं। भीतर ले जाने के लिए एक ही उपाय करना पड़ता है, बाहर ले जाने वाले उपाय छोड़ देने पड़ते हैं। और भोगी और त्यागी दोनों ही बाहर लड़ते रहते हैं। एक ऊर्जा को भीतर की तरफ खींचता है। जितना भीतर की तरफ खींचता है, ऊर्जा उतना बाहर की तरफ धक्का देती है। दूसरा, जितना बाहर की तरफ धक्के देता है, ऊर्जा भीतर की तरफ जाने की चेष्टा करती है। जैसे गेंद को दीवाल पर फेंक कर मारा गया हो और गेंद आपकी तरफ लौट आती हो, ठीक ऐसे ही शक्ति के साथ हमारा संघर्ष एब्सर्डिटीज में ले जाता है, असंगतियों में ले जाता है।
तंत्र कहता है, ठहर जाओ। गवाह बन जाओ। साक्षी बन जाओ। देखो, निर्णय मत लो, व्याख्या मत करो, पक्ष-विपक्ष मत चुनो, प्रशंसा नहीं, निंदा नहीं। खड़े रह जाओ। बस एक बार देख लो। स्टैंड स्टिल। और जैसे ही कोई एक क्षण को खड़ा हो गया, तत्काल एक क्षण को लगता है कि ठहर गई, क्योंकि बाहर जाना तत्काल बंद हो जाता है, और दूसरे क्षण पता चलता है कि धारा भीतर की तरफ बहने लगी।
बाहर की तरफ बहना नीचे की तरफ बहना है। भीतर की तरफ बहना ऊपर की तरफ बहना है। भीतर और ऊपर पर्यायवाची हैं, इस अंतर्यात्रा में। बाहर और नीचे पर्यायवाची हैं, इस साधना में। और जैसे ही ऊर्जा भीतर की तरफ बहती है तो अंतर्मैथुन शुरू होता है। वह तंत्र की अपनी अदभुत कला की बात है अंतर्मैथुन।
एक संभोग है जो व्यक्ति दूसरे से करता है, एक रति है, एक संबंध है जो व्यक्ति अपने विरोधी से, अपोजिट सेक्स से निर्मित करता है। पुरुष स्त्री से या स्त्री पुरुष से। लेकिन जब भीतर की तरफ यात्रा शुरू होती है तो अपने ही भीतरी केंद्रों पर संबंध निर्मित होने शुरू हो जाते हैं। एक मूलाधार जब दूसरे मूलाधार से संबंधित होता है तो यौन घटित होता है। वे भी दो चक्र हैं। उनके मिलन से यौन घटित होता है। क्षण भर का सुख घटित होता है। जैसे ही मूलाधार से शक्ति भीतर के दूसरे चक्र की तरफ बहनी शुरू होती है, दूसरे चक्र पर मिलन घटित होता है। दो चक्र फिर मिलते हैं, लेकिन यह अंतर-चक्रों का मिलन है, और तंत्र शुरू हो गया। अंतमैथुन शुरू हुआ।
ऐसे सात चक्र हैं और प्रत्येक चक्र पर जब ऊर्जा पहुंचती है तो और गहरे आनंद और गहरे आनंद का अनुभव होता है, और सातवें चक्र पर ऊर्जा के बहने पर परम आनंद का
तंत्र (प्रश्नोत्तर)
265
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org