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________________ इसे थोड़ा समझ लेना जरूरी है, क्योंकि यह काम-ऊर्जा के रूपांतरण के लिए अनिवार्य समझ बनेगी। प्रत्येक काम के कृत्य के दो पहलू हैं। प्रत्येक कृत्य के ही दो पहलू हैं। काम-कृत्य के भी दो पहलू हैं। उदाहरण से समझें कि भूख लगी है, खाने के लिए आतुर हैं, पागल हैं, सब दांव पर लगा सकते हैं। फिर भोजन कर लिया है। फिर भोजन करने के बाद भोजन को बिलकुल भूल जाते हैं, फिर भोजन की कोई याद नहीं रह जाती। और अगर ज्यादा भोजन कर लिया तो जिस भोजन के लिए पागल थे, उसी भोजन को वॉमिट करने की, वमन करने की इच्छा पैदा हो जाती है। जिस भोजन के लिए दीवाने थे, उसी से अरुचि पैदा हो जाती है। जिस भोजन के लिए सब कुछ दांव पर लगाने के लिए तैयार थे, अब उसी के प्रति मन में बड़ा तिरस्कार और निंदा पैदा हो जाती है। चित्त की प्रत्येक वृत्ति, भूख और प्यास के दो पहलू हैं-प्यास की स्थिति और फिर प्यास के पूरे हो जाने की स्थिति। ठीक ऐसे ही काम जब मांग करता है मन में, तब आदमी विक्षिप्त और पागल होकर काम के पीछे दौड़ता है। फिर काम एक शिखर तक ले जाता है, जहां सिर्फ शक्ति क्षीण होती है, और व्यक्ति वापस उदासी के गड्ढे में गिर जाता है। उस उदासी के गड्ढे में अब वह काम के विरोध में सोचता है। ऐसा भोगी खोजना मुश्किल है जो भोग के बाद त्याग की भाषा में न सोचता हो। त्याग जो है वह काम की ही पृष्ठभूमि में सोचा गया खयाल है। त्याग जो है वह काम का ही पश्चात्ताप है, रिपेंटेंस है। त्याग जो है वह खोयी गई शक्ति के लिए किया गया दुख है। सभी भोगी काम की तप्ति के बाद त्याग का, रिनंसिएशन का, विषाद का, उपेक्षा का, तिरस्कार का अनुभव करते हैं। पति पत्नी की तरफ पीठ करके जब सो जाता है तो वह पीठ बड़ी सूचक है। पत्नी उस पीठ की सूचना को भी समझती है, इसलिए पत्नी पीठ के पीछे निरंतर रोती है। क्योंकि क्षण भर पहले यही व्यक्ति पागल था और यही व्यक्ति क्षण भर के बाद पीठ कर लिया है। और यही व्यक्ति अब ऐसा उदास और थका और परेशान है, जैसे दोबारा अब इसकी यह मांग नहीं उठनेवाली है। चौबीस घंटे में, अड़तालीस घंटे में, शक्ति और उम्र के अनुसार मांग फिर पकड़ लेगी, फिर भोग का चित्त खड़ा हो जाएगा, और वह पिछला सब पश्चात्ताप भूल जाएगा जो उसने कल तक किये थे। और फिर पश्चात्ताप, और पश्चात्ताप के क्षण में वह भोग की सब आकांक्षाएं, स्वप्न, सुख की कामनाएं, सब भूल जायेगा जो उसने जिंदगी भर की हैं। त्याग और भोग एक सिक्के के दो पहलू हैं। प्रत्येक व्यक्ति चौबीस घंटे में निरंतर त्याग और भोग के पेंडुलम में घूमता रहता है। कुछ लोग फिर इसमें से एक को पकड़ लेते हैं। कुछ लोग भोग को पकड़ लेते हैं तो वे वेश्यागृहों में पड़े रह जाते हैं। कुछ लोग इसमें से दूसरे सिक्के को, पश्चात्ताप को पकड़ लेते हैं, तो मोनेस्ट्रीज में, आश्रमों में बैठ जाते हैं। लेकिन ये दोनों ही उस सिक्के के एक-एक हिस्से को पकड़े हुए हैं जिसमें दूसरा पहलू पीछे छिपा है। तंत्र (प्रश्नोत्तर) 261 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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