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________________ और पक्षी गीत गाने लगे हैं, और सुबह की ठंडी हवाएं बाहर फैल गई हैं, ठीक वैसा ही कभी ध्यान के किसी क्षण में भीतर भी होता है। उस रंग को देखकर ही इस बाहर के रंग को किसी ने चुन लिया था। दूसरे रंग भी चुने गए हैं, वे भी भीतर देखे गए रंग हैं। उनके चुनाव के भी कारण हैं। मुसलमान फकीरों ने हरा रंग चुन लिया था क्योंकि भीतर वह रंग भी देखा जाता है। बुद्ध के साधकों ने पीला रंग चुन लिया था। वह रंग भी भीतर देखा जाता है। थियोसाफिकल सोसाइटी ने कभी एक रंग के लिए सारी दुनिया के बाजारों में खोज की थी-एक नीले रंग के लिए। कर्नल अल्काट को एक रंग ध्यान में दिखायी पड़ा और उस रंग को सारी दुनिया के बाजारों में खोजने के लिए आदमी भेजे गए। क्योंकि अल्काट का कहना था, उसी रंग का उपयोग साधक के लिए करना है। बड़ी मुश्किल हुई, वर्षों खोज हुई, ठीक रंग नहीं मिलता था। नीले के बहुत शेड मिलते थे, लेकिन अल्काट कह देता कि यह वह रंग नहीं है। आखिर दो-तीन साल के बाद इटली के एक बाजार में कहीं वह रंग मिला और तब अल्काट ने कहा कि ठीक है, अब वह रंग मिल गया जो मैंने देखा था। यह रंग काम करेगा। उस रंग को देखने से, जो अल्काट ने रंग देखा था, दूसरे व्यक्ति के भीतर भी झंकार पैदा हो सकती है। वह रंग जगा सकता है। __गैरिक रंग सूर्योदय का रंग है। और भीतर जब प्राणों का उदय होता है तो वैसा रंग फैल जाता है। रंग भी, ध्वनि भी, गंध भी, स्वाद भी, स्पर्श भी, सबका चुनाव करना होगा, तब ऊपर की यात्रा शुरू होती है। और हम सब कंफ्यूज्ड हैं, क्योंकि हम सब अनर्गल, असंगत चुनाव करते रहते हैं। अनेक तरह की नाव पर सवार हो जाते हैं। फिर जीवन टूटता है, जीवन नष्ट होता है और हम कहीं पहुंच नहीं पाते हैं। आज इतना ही। शेष कल। 256 ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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