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________________ में बाधा बनेंगे। आपको नर्क जाना है, अपनी गाड़ी पकड़ें और अपनी गाड़ी पर मजबूती से रुके रहें। लेकिन आदमी अजीब है, एक पांव नर्क की गाड़ी पर रखे रहता है, एक पांव स्वर्ग की गाड़ी पर रखे रहता है। कहीं भी नहीं पहुंच पाता। यह सारी जिंदगी एक घसीटन बन जाती है। वह यहां से वहां तक घसीटता रहता है। आदमी ऐसी बैलगाड़ी है जिसमें दोनों तरफ बैल जोत दिए हैं। वे दोनों तरफ खींचते रहते हैं। कभी यह बैल थोड़ा खींच लेता है, फिर मन पछताता है कि नर्क चूक गया, थोड़ा इस तरफ चलें। फिर थोड़ा नर्क की तरफ गए कि फिर मन पछताता है, कहीं स्वर्ग न चूक जाये, थोड़ा उस तरफ चलें। और सारी जिंदगी ऐसे ही बीत जाती है, बैलगाड़ी कहीं पहुंच नहीं पाती। अस्थिपंजर ढीले हो जाते हैं और बैल मर जाते हैं। फिर नई दुनिया, फिर नई जिंदगी, फिर वही काम हम पुरानी आदत से शुरू करते हैं। ___ यह निर्णय करें कि कहां जाना है, निर्णय करें क्या होना है, निर्णय करें क्या पाना है, निर्णय करें क्या लक्ष्य है, क्या दिशा है, क्या आयाम है। फिर उस निर्णय के अनुसार चलना शुरू करें, उस निर्णय के अनुसार जिंदगी में सब बदलें। आंख, कान, मुंह, हाथ सब को बदलें। फिर वही स्पर्श करें जो परमात्मा की तरफ ले जानेवाला हो। फिर वही सुनें जिसकी झंकार प्राणों को छुए और वह ऊपर उठ आये। फिर वही खायें जो जीवन को ऊंचा उठाता है और हल्का करता है। फिर वही देखें जो आंखों में दीया बन जाता है और अंधेरे को दूर करता है। और फिर सब-कुछ बदल दें। मंदिर में भी एक सुगंध है। मुसलमान फकीरों ने कुछ सुगंधे चुनी थीं। इस मुल्क में हिंदू संन्यासियों ने भी कुछ सुगंधे चुनी थीं। उन सुगंधों का कुछ आधार है। उनका कुछ कारण है। जब आदमी किसी गहरे ध्यान में पहंचता है तो अक्सर जैसी चंदन की गंध होती है, वैसी गंध से भर जाता है। इसलिए तो मंदिर में हमने चंदन को जलाना शुरू किया कि शायद यह गंध किसी के भीतर की गंध को चोट करे और स्मरण दिला दे। जब कोई आदमी ध्यान की किसी स्थिति में पहुंच जाता है तो ऐसी गंध से भर जाता है जैसे लोभान की गंध होती है। इसलिए मुसलमान फकीरों ने लोबान को चुना कि शायद लोबान की गंध किसी के भीतर सोयी हुई गंध को चोट मार दे और उठा दे। यह सब-कुछ चुनाव है, यह सब अकारण नहीं है। इस सबके पीछे कारण है। ___ एक छोटी-सी बात फिर मैं अपनी बात पूरी करूं। मुझे कल किसी मित्र ने पूछा कि आपने गैरिक वस्त्र क्यों संन्यास के लिए चुना? कारण है उसका। जैसे-जैसे चित्त शांत होता है भीतर, वैसे-वैसे सूर्योदय का प्रकाश भीतर फैलना शुरू हो जाता है। वह गैरिक होता है। वह गेरुवे वस्त्र बाहर से उस भीतर के रंग को चोट करते रहें, यही गैरिक वस्त्रों के चुनाव का अर्थ है। रोज-रोज देखता रहे, उठाये, पहने, सोये, उठे, देखता रहे तो शायद उसके भीतर जो सोया हुआ रंग है, एक नये सूर्योदय का। वह जो ध्यान में कभी प्रकट होता है। जैसे अभी सूरज नहीं जगा और सुबह की लालिमा फैल गई, सारी प्राची लाल हो गई है। अभी सूरज नहीं आया है सिर्फ प्राची लाल हो गयी है अकाम (प्रश्नोत्तर) 255 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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