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________________ मेरा सिर झुक-झुक कर टेबल से लगने लगा और वह इतने जोर से चम्मच-कांटे पटकने लगे कि मेरा सिर उसकी ताल में टेबल पर गिरे और उठे। फिर मेरा सिर लहूलुहान हो गया और मैंने चिल्लाकर कहा कि बंद करो यह वाद्य, अन्यथा मैं सिर को कैसे रोकू! तब उस संगीतज्ञ ने बंद किया। सिर पर खून की बूंदें आ गयीं, सारा सिर छिल गया। मुसोलिनी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि मैंने कहा, मुझे माफ करना, मुझे पता नहीं था कि संगीत का ऐसा परिणाम भीतर हो सकता है कि मैं रोक ही नहीं पा रहा था। शरीर अवश हो गया, सिर मेरे हाथ के बाहर हो गया और मुझे ऐसा लगा कि अब तो मैं मर जाऊंगा। क्योंकि मैं कोशिश करूं! और कोई उपाय नहीं...जितना ही कोशिश करूं, सिर उतना ही और जोर से जाकर टेबल से टकराने लगा। और ओंकार नाथ ने कहा कि मेरी कोई हैसियत नहीं। कृष्ण के बाबत मैं कोई वक्तव्य दूं, यह ठीक नहीं। लेकिन इतना हो सकता है, तो उतना भी हो सकता है। इस्लाम ने संगीत को वर्जित किया, इसलिए नहीं कि संगीत अनिवार्य रूप से कामऊर्जा को नीचे ले जाता है। लेकिन संगीत के जितने प्रकार प्रचलित हैं, उनमें से निन्यानबे प्रतिशत काम-ऊर्जा को नीचे की तरफ ले जानेवाले हैं। शायद एक प्रतिशत संगीत मुश्किल से जगत में बचा है जो ऊर्जा को ऊपर ले जाये। वह भी खोता जा रहा है, उसका भी कोई उपाय बचाने का नहीं दिखायी पड़ता। ऐसे सूफी फकीरों के नृत्य हैं, जिनको देखते-देखते देखनेवाले ध्यानस्थ हो जायें। ____ गुरजिएफ सूफी फकीरों के दरवेश नृत्य की एक टोली बनाकर सारे यूरोप और अमरीका में घूमता रहा और उसने कहा, सिर्फ देखो और कुछ मत करो। तीस लोगों की टोली है। वे नाचना शुरू करते हैं। फकीरों का नाच है। और जितने लोग बैठे हैं वे थोड़ी देर में ध्यानस्थ हो जाएंगे। वे सिर्फ देखेंगे मूवमेंट्स, वे मूवमेंट्स उनके प्राणों में उतर जाएंगे और उनके भीतर भी करस्पांडिंग मूवमेंट पैदा होंगे। जो बाहर हो रहा है, वही आकृति उनके भीतर भी डोलने लगेगी। बाहर वह जो फकीर नाच रहे हैं, उनके नाचने की जो रिदम और गति है और लय है, वह धीरे-धीरे उनके हृदय की गति और लय बन जाएगी। और उनके भीतर भी कोई नृत्य शुरू हो जाएगा और उनकी ऊर्जा में रूपांतरण हो जाएगा। आंख से जो हम देखते हैं, कान से जो हम सुनते हैं, ओंठ से जो हम स्वाद लेते हैं, नाक से जो हम गंध लेते हैं, उन सबके संबंध हैं। मंदिरों में घंटे हमने कभी लटकाये थे। हर कोई घंटा मतलब का नहीं है। कुछ विशेष घंटे ही काम के हो सकते हैं। तिब्बतियों के पास एक विशेष घंटा होता है, शायद आपमें से किसी ने देखा हो। वह घंटा ऐसा लटकाने वाला नहीं होता। बर्तन की तरह बड़ा होता है, और बजाने को उसके अंदर एक गोल डंडा घुमाकर चोट करनी पड़ती है। जैसे एक बाल्टी रखी हो, उसके अंदर गोल घुमाकर डंडे से चोट करनी पड़ती है। उस डंडे और घंटे के बीच चोट का एक विशेष क्रम है। उस चोट करने से, घंटे से जोर की आवाज निकलती है-ॐ मणि पद्मे हम-यह पूरा सूत्र तिब्बत का उससे निकलता है। और यह सूत्र बार-बार मंदिर में गूंजता रहता है। और अकाम (प्रश्नोत्तर) 251 www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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