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________________ का पूरा और भी आनंदित, और भी रिफ्रेस्ड, और भी ताजा होकर वापस लौट आता है। लेकिन इसी चित्रकार को आप नौकरी पर रख लें और कहें कि हम रुपए देंगे, और चित्र बनाओ, तब वह थक कर लौट आता है। क्योंकि उसका पूरा मन उस चित्र के साथ खड़ा नहीं हो पाता। जैसे ही हमारे मन का कोई हिस्सा हमारे विरोध में हो जाता है, तो हमारी शक्ति क्षीण होती है। __जब मैंने कहा, टोटल एक्ट, तो किसी एक काम के लिए नहीं, सारे कामों के लिए, जो भी आप कर रहे हैं। अगर भोजन करने जैसा या स्नान करने जैसा साधारण काम कर रहे हैं तो भी पूरा करें। स्नान करते वक्त स्नान करना ही अकेला कृत्य हो, न तो मन कुछ और सोचे, न मन कुछ और करे। आप पूरे के पूरे स्नान ही कर लें। तो शरीर ही स्नान नहीं करेगा, आत्मा भी स्नान कर जायेगी। आप स्नान के बाहर पाएंगे कि आप कुछ लेकर लौटे हैं। लेकिन नहीं, स्नान आप कर रहे हैं और हो सकता है पैर आपके अब तक सड़क पर पहुंच गए हों और मन आपका अब तक दफ्तर में पहुंच गया हो और आप भागे हुए हैं। स्नान का कोई रस नहीं, कोई आनंद नहीं। वह स्नान भी एक टूटा हुआ कृत्य है। कहीं पानी डाला है और भागे। इस भागने में आप शक्ति को खो रहे हैं। और ऐसा प्रतिपल हो रहा है, चौबीस घंटे यही हो रहा है। बिस्तर पर सोए हैं लेकिन सोए नहीं हैं, क्योंकि सोने का एक्ट पूरा होगा तभी सुबह विश्राम होगा। सो रहे हैं, सपने देख रहे हैं। सो रहे हैं, सोच रहे हैं। सो रहे हैं, करवट बदल रहे हैं। हजार विचार हैं, हजार काम हैं। आज दिन में क्या किया, वह भी साथ है, कल सुबह क्या करना है, वह भी साथ है। तब सुबह आप और भी थककर, चकनाचूर होकर बिस्तर से उठते हैं। नींद भी आपकी विश्राम न दे पाएगी, क्योंकि नींद में भी आप पूरे नहीं हो पाते कि सो ही जायें, नींद में भी अधूरे ही होते हैं। इसलिए नींद उखड़ती जा रही है, नींद कम होती जा रही है। सारी दुनिया में बड़े से बड़े सवालों में एक यह भी है कि नींद का क्या होगा? नींद खत्म होती जा रही है। नींद खत्म होगी, क्योंकि नींद कहती है कि पूरे सोओ तो ही सो सकते हो। लेकिन चौबीस घंटे हम टूटे हुए हैं, और जब सब कामों में टूटे हुए हैं तो नींद में इकट्ठे कैसे हो सकते हैं? रात तो हमारे दिन भर का जोड़ है। जैसे हम दिन भर रहे हैं वैसे ही हम रात नींद में भी होंगे। और ध्यान रहे जैसे हम रात नींद में होंगे कल का दिन भी उसी आधार पर फैलेगा और विकसित होगा। फिर जिंदगी पूरी टूट जाती है। न तो हम ठीक से जी पाते हैं, जीते वक्त भी हजार तरह के रोग हैं। एक मित्र को मेरे पास अभी लाया गया है। उनको जो लोग लाए थे उन्होंने कहा कि ये पांच बार आत्महत्या का प्रयास कर चुके हैं। मैंने कहा, बड़े गजब के आदमी हैं, प्रयास भी अधूरा करते हैं, ऐसा मालूम होता है। पांच बार! और जो आदमी पांच बार आत्महत्या का प्रयास कर चुका है वह पूरा जी रहा होगा, यह तो माना ही नहीं जा सकता। अगर पूरे ही जी रहे हों तो मरने की क्या जरूरत आ गई? पूरा जीएगा भी नहीं, पूरा मरेगा भी नहीं। पांच बार प्रयास कर चुके हैं! __ मैंने उनसे कहा कि अब तो शर्म खाओ, अब प्रयास मत करो। पांच बार काफी है! अकाम (प्रश्नोत्तर) 245 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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