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________________ 236 और अगर पच्चीस वर्ष तक किसी व्यक्ति के मन को काम-ऊर्जा में नीचे उतरने से रोका जा सके तो वह इतने आनंद का अनुभव कर लेता है कि कल अगर वह काम-ऊर्जा के जगत गया भी, अगर वह यौन के जगत में गया भीं तो उसके सामने एक कम्पेरीजन होता है । उसे पता होता है कि जब वह नहीं गया था तब का आनंद, और जब गया तब के आनंद में बुनियादी फर्क है। और इसलिए उसका चित्त निरंतर कहता है कि कब मैं वापस लौट जाऊं । इसलिए पच्चीस साल तक जो ब्रह्मचर्य के जीवन में रहा है, वह पचास साल के बाद पुनः संन्यासी की दुनिया की तरफ उन्मुख होना शुरू हो जाएगा। क्योंकि उसके पास तुलना का उपाय है। आज जब हम किसी व्यक्ति को ब्रह्मचर्य के आनंद की बात कहते हैं तो बात का कोई अर्थ ही नहीं होता। क्योंकि उसे ब्रह्मचर्य के आनंद का कुछ भी पता नहीं है । वह एक ही सुख को जानता है, जो कि उसे यौन से मिलता है। इसलिए ब्रह्मचर्य की बात बिलकुल ही व्यर्थ मालूम पड़ती है। अकाम की बात उसके लिए सार्थक नहीं मालूम पड़ती। वह उसके अनुभव का हिस्सा नहीं है । और मजे की बात यह है कि एक बार ऊर्जा नीचे की तरफ प्रवाहित होना शुरू हो जाये, फिर उसे ऊपर की तरफ प्रवाहित करना कठिन हो जाता है। मार्ग बन जाते हैं। अगर आप घर में एक ग्लास पानी लुढ़का दें तो पानी एक मार्ग बनाकर बह जाएगा। फिर धूप पड़ेगी, पानी उड़ जाएगा। कुछ भी नहीं बचेगा उस जमीन पर । लेकिन पानी के बहने की एक सूखी रेखा बच जाएगी। अगर आप दूसरी दफा भी पानी उस कमरे में डालें तो सौ में निन्यानबे मौके यह हैं कि उसी सूखी रेखा को पकड़ कर वह पानी फिर बहेगा । लीस्ट रेसिस्टेंस को पकड़ना स्वभाव है। जहां कम से कम तकलीफ होती है, वहीं बह जाने की इच्छा होती है। एक बार अपरिपक्व मन जब काम की दुनिया में उतर जाता है, यौन की दुनिया में उतर जाता है, तो जीवन भर जब भी शक्ति इकट्ठी होती है, लीस्ट रेसिस्टेंस का नियम मानकर वह उसी मार्ग से बह जाने की तत्परता दिखलाती है । और जब तक नहीं बह जाती तब तक भीतर पीड़ा, परेशानी अनुभव होती है। और जब बह जाती है तो रिलीफ मालूम होता है। जैसे हल्का गया मन भार से हम मुक्त हो गए। लेकिन एक बार अगर ऊपर की तरफ जानेवाला मार्ग खुल जाये तो फिर निरंतर उसका स्मरण आता रहता है । किस विधि से मन यौन- ऊर्जा को ऊर्ध्वगामी बना सकता है, तीन बातें इस संबंध में समझ लेनी जरूरी हैं। पहली बात यह समझ लेनी जरूरी है कि जो भी चीज नीचे जा सकती है वह चीज ऊपर भी जा सकती है। इसे वैज्ञानिक सूत्र समझा जा सकता है। असल में जिस चीज का भी नीचे जाने का उपाय है, उसके ऊपर जाने का भी उपाय होगा ही, चाहे हमें पता हो चाहे हमें पता न हो। जिस रास्ते से हम नीचे जा सकते हैं, उसी रास्ते से ऊपर भी जा सकते हैं। रास्ता वही होता है, सिर्फ रुख बदलना होता है। आप यहां तक आये हैं जिस रास्ते से अपने घर से, उसी रास्ते से आप घर वापस लौटेंगे। तब सिर्फ आपकी पीठ घर की तरफ थी, अब मुंह घर की तरफ होगा। कोई दरवाजा ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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