________________
गति कर सकती है। और अगर किसी वृद्ध में भी यह काम-ऊर्जा ऊपर की तरफ गति कर जाये तो उसकी जिंदगी उतनी ही सरल और इनोसेंट और निर्दोष हो जाएगी जितनी छोटे बच्चे की थी। उसकी आंखों में फिर वही सरलता झलकने लगेगी। उसके व्यक्तित्व में फिर वही भोलापन लौट आएगा जो छोटे बच्चे का था। बल्कि उससे भी ज्यादा। क्योंकि छोटे बच्चे का भोलापन खतरे से भरा हुआ है, अब यह भोलापन उसका नष्ट होगा। अभी उसके भोलेपन के नीचे ज्वालामुखी धधक रहे हैं, तैयार हो रहे हैं। वह अभी फूटेंगे। अगर बूढ़े आदमी की काम-ऊर्जा वापस लौट जाए तो बच्चे से भी ज्यादा सरल, निर्दोष, इनोसेंट उसकी जिंदगी में उतर आता है। साधुता इसी निर्दोषता का नाम है। काम-ऊर्जा का ऊर्ध्वगमन साधु की यात्रा है।
यह काम-ऊर्जा मन से ही संचालित होती है। यह काम-ऊर्जा मन का ही संकल्प है। मन की आज्ञा के बिना यह काम-ऊर्जा नीचे की ओर प्रवाहित नहीं होती है। इसलिए यदि मन को ऐसी व्यवस्था दी जा सके कि वह इस काम-ऊर्जा को कम प्रवाहित करे तो व्यक्ति के जीवन में काम कम हो जाएगा। ज्यादा प्रवाहित करे तो ज्यादा हो जाएगा। बहुत ज्यादा मन को आतर किया जाए तो बहुत ज्यादा हो जाएगा।
अमरीका में विगत बीस वर्षों में लड़के और लड़कियों की प्रौढ़ता की उम्र दो साल नीचे गिर गई है। जहां तेरह साल में लड़कियां प्रौढ़ होती थीं, सेक्सुअली मैच्योर होती थीं, वहां ग्यारह साल में होनी शुरू हो गई हैं। अमरीका के चित्त पर इतने जोर से काम-ऊर्जा को आज्ञा देने के सब तरह के दबाव हैं। इसलिए यह स्वाभाविक है कि यह उम्र और नीचे गिरेगी। यह ग्यारह से नौ साल भी पहुंच सकती है. यह सात साल भी पहुंच सकती है. यह पांच साल भी पहुंच सकती है।
अगर हम चारों तरफ पूरी हवाओं को कामुक वातावरण से भर दें, और अगर चारों तरफ सिवाय काम को आकर्षित करने के कुछ भी न हो, अगर हर चीज कामुक सिम्बल बन जाए, अगर कार भी बेचनी हो तो अर्धनग्न स्त्री को खड़ा करना पड़े कार के पास, अगर सिगरेट भी बेचनी हो तो स्त्री को लाना पड़े, अगर कुछ भी करना हो तो सेक्स सिम्बल को एक्सप्लाएट करना पड़े, तो चित्त पर स्वाभाविक भयंकर परिणाम होंगे। और चित्त जो आज्ञा दो साल बाद देता, वह दो साल पहले आज्ञा दे देगा। यह प्रिमैच्योर आज्ञा है और इसके खतरनाक परिणाम होने वाले हैं। ___ इससे उलटा भी हुआ है। इस देश में हमने पच्चीस वर्ष तक युवक और युवतियों को यौन के जगत से बिलकुल ही अछूता रखने में सफलता पायी थी। लेकिन उलटा ही सब किया था, सारी व्यवस्था बदली थी। चित्त आज्ञा न दे इसके सारे उपाय किए थे। चित्त आज्ञा न दे, इसकी सारी व्यवस्था की थी। उस तरह के व्यायाम का उपयोग किया था, उस तरह के आसन का उपयोग किया था, उस तरह के ध्यान का उपयोग किया था, उस तरह के मनन और चिंतन का उपयोग किया था, उस तरह के संकल्प और विल-पावर का उपयोग किया था, जो मन को आज्ञा देने से रोकेगा।
अकाम (प्रश्नोत्तर) 235
www.jainelibrary.org
Jain Education International
For Personal & Private Use Only