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इसलिए दो शब्दों को पहले समझ लें। एक तो जैविक ऊर्जा, जो मनुष्य के जीवकोष्ठों से संबंधित है, जिनके द्वारा व्यक्ति को शरीर उपलब्ध होता है। ये जो जीव कोष्ठ हैं, ये जो सेल्स हैं, ये शरीर के ही हिस्से हैं। जैविक, बायोलॉजिकल हिस्सा हम सब की आंखों में प्रत्यक्ष है-जिसे हम वीर्य कहें, यौन-ऊर्जा कहें या कोई और नाम दें। लेकिन एक और पहलू भी उसके पीछे जुड़ा है जो आत्मगत है, शक्तिगत है। उसे मैं काम-ऊर्जा या आत्म- ऊर्जा या जो भी हम नाम देना चाहें, दे सकते हैं। ___ जैसे कि एक लोहे का चुंबक होता है। एक तो लोहे का टुकड़ा होता है जो साफ दिखायी पड़ता है और एक मैगनेटिक फील्ड होता है उसके चारों तरफ, जो दिखायी नहीं पड़ता है। लेकिन अगर हम आस-पास लोहे के टुकड़े रखें तो वह जो मैगनेटिक शक्ति है चुंबक की, उसे खींच लेती है। एक क्षेत्र है जिसके भीतर वह शक्ति काम करती है। यह लोहे का टुकड़ा कल हो सकता है अपनी चुंबकीय शक्ति खो दे, तो भी लोहे का टुकड़ा रहेगा। उस लोहे के टुकड़े के वजन में अंतर नहीं पड़ेगा, उस लोहे के टुकड़े के कांस्टीटयूशन में भी कोई अंतर नहीं पड़ेगा, उसकी रचना और बनावट में भी कोई अंतर दिखाई नहीं पड़ेगा, लेकिन एक मौलिक अंतर हो जाएगा, मैगनेटिक उसमें से मर गया है, उसमें से चुंबक जा चुका है। यह उदाहरण के लिए मैंने कहा।
आत्मा एक फील्ड है, एक चुंबकीय क्षेत्र है। शरीर दिखायी पड़ता है, आत्मा के केवल प्रभाव दिखायी पड़ते हैं, जैसे चुंबक के प्रभाव दिखायी पड़ते हैं। यह जमीन है, यह दिखाई पड़ रही है, लेकिन जमीन पूरे वक्त हमें खींचे हुए है, वह दिखायी नहीं पड़ रहा है। यह जमीन हमें छोड़ दे तो हम एक क्षण भी इस जमीन पर नहीं रह सकेंगे। ____ अंतरिक्ष में जो यात्री यात्रा कर रहे हैं, उनके लिए अंतरिक्ष की यात्रा में जो सबसे ज्यादा कठिन बात है, वह यही है कि जैसे ही दो सौ मील जमीन के मैगनेटिक फील्ड को छोड़कर उनका यान ऊपर जाता है, वैसे ही जमीन की चुंबकीय शक्ति विदा हो जाती है। तब फिर वे हवा के गुब्बारों की तरह अपने यान में भटक सकते हैं। अगर उनकी पट्टियां छोड़ दी जायें उनकी कुर्सी से, तो जैसे गैस भरा हुआ गुब्बारा मकान की छत को छूने लगे, ऐसे ही वे भी यान की छत को छूने लगेंगे। ___ यह जमीन हमें खींचे हुए है, लेकिन उसका हमें पता नहीं चलता है। क्योंकि वह दिखायी पड़नेवाली बात नहीं है। जो दिखायी पड़ती है वह जमीन है, जो नहीं दिखायी पड़ता है वह उसका ग्रेविटेशन है। जो दिखायी पड़ता है वह शरीर है, वह जो नहीं दिखायी पड़ता है वह मनस और आत्मा है। ठीक ऐसे ही काम के साथ, यौन के साथ दो पहलुओं को समझ लेना जरूरी है। जो दिखायी पड़ती हैं वे जैविक कोष्ठ हैं, जो नहीं दिखायी पड़ता है वह कामऊर्जा है। इस सत्य को ठीक से न समझने से आगे बातें फैलाकर देखनी कठिन हो जाती हैं।
इस देश में काम-ऊर्जा पर बड़े प्रयोग हुए हैं। इस देश में पांच हजार वर्ष का लंबा इतिहास है। शायद उससे भी ज्यादा पुराना है, क्योंकि हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में भी ऐसी मूर्तियां मिली हैं जो इस बात की खबर देती हैं कि योग की धारणा तब तक विकसित हो चुकी
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ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
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