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________________ होगी। हड़प्पा की मूर्तियां कोई सात हजार साल पुरानी हैं। सात हजार साल के लंबे इतिहास में इस मुल्क ने काम-ऊर्जा पर, सेक्स एनर्जी पर, बहुत अनूठे प्रयोग किए हैं। लेकिन उनको समझने में भूल हो जाती है। क्योंकि काम ऊर्जा से हम जीव-ऊर्जा, बायोलाजिकल अर्थ लेकर कठिनाई में पड़ जाते हैं । इस देश के योगियों ने कहा है कि काम-ऊर्जा, सेक्स एनर्जी, नीचे से ऊपर की तरफ ऊर्ध्वगमन कर सकती है। वैज्ञानिक कहता है, हम शरीर में काटकर भी देख लेते हैं योगी के, लेकिन उसके वीर्य-कण तो वहीं पड़े रहते हैं । उसी जगह, जहां साधारण आदमी के शरीर में पड़े होते हैं। वीर्य ऊपर चढ़ता हुआ दिखायी नहीं पड़ता है। ऊपर चढ़ता भी नहीं है, चढ़ भी नहीं सकता। लेकिन जिस काम - ऊर्जा के चढ़ने की बात की है उसे हम समझ नहीं पाए। वीर्य-कणों की वह बात नहीं है, वीर्य-कणों के साथ एक और ऊर्जा जुड़ी हुई है, जो दिखायी नहीं पड़ती है, वह ऊर्जा ऊपर ऊर्ध्वगमन कर सकती है। और जब कोई व्यक्ति यौन-संबंध से गुजरता है तो उसके जैविक परमाणु तो उसके शरीर छोड़ते ही हैं, साथ ही उसकी काम-ऊर्जा, उसकी सेक्स एनर्जी भी उसके शरीर से बाहर है। वह सेक्स एनर्जी आकाश में खो जाती है । और यौनकण नये व्यक्ति को जन्म देने की यात्रा पर निकल जाते हैं। संभोग के क्षण में दो घटनाएं घटती हैं - एक जैविक और एक साइकिक । एक तो जीव शास्त्रीय दृष्टि से घटना घटती है, जैसा कि बायोलॉजिस्ट अध्ययन कर रहा है, वह वीर्यकण का स्खलन है। वह वीर्य-कण का यात्रा पर निकलना है अपने विरोधी कणों की खोज में, जिससे कि नये जीवन को वह जन्म दे पाये । और एक दूसरी घटना है। जिसकी योग खोज करता है, वह दूसरी घटना है। इस कृत्य के साथ ही मनस की शक्ति भी स्खलित होती है। वह तो सिर्फ शून्य में खो जाती है। इस मनस-शक्ति को ऊपर ले जाने के उपाय हैं। और जब वीर्य के ऊर्ध्वगमन की बात कही जाती है तो कोई शरीर - शास्त्री, कोई डॉक्टर भूल कर यह न समझे कि वह वीर्य की, या वीर्य-कणों के ऊपर ले जाने की बात है । वीर्य-कण ऊपर नहीं जा सकते। उनके लिए कोई मार्ग नहीं है शरीर में ऊपर। सहस्रार तक तथा मस्तिष्क तक पहुंचने के लिए कोई उपाय नहीं है उनके पास । जो चीज जाती है वह ऊर्जा है। वह मैगनेटिक फोर्स है जो ऊपर की तरफ जाती है। यह जो मैगनेटिक फोर्स है, इसके ही नीचे जाने पर वीर्य-कण भी सक्रिय होते हैं। बच्चा जब पैदा होता है, लड़की जब पैदा होती है, तब वे अपने यौन संस्थान को पूरा का पूरा लेकर पैदा होते हैं। स्त्री तो अपने जीवन में जितने रजकणों का उपयोग करेगी उन सबको लेकर ही पैदा होती है। फिर कोई नया रजकण पैदा नहीं होता। कोई तीन लाख छोटे अंडों को लेकर स्त्री पैदा ही होती है। बच्ची पैदा ही होती है। एक दिन की बच्ची के पास भी तीन लाख अंडों की सामग्री मौजूद होती है। इसमें से ज्यादा से ज्यादा दो सौ अंडे जीवन लेने के लिए तैयार होकर उसके गर्भाधान तक पहुंचते हैं। उनमें से भी दस-बारह, ज्यादा से ज्यादा बीस, सक्रिय और जीवन में सफल उतर पाते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only अकाम (प्रश्नोत्तर) 233 www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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