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प्रतिक्रिया से बचना, प्रत्युत्तर की तरफ बढ़ना है। और जिस दिन जीवन सचेतन प्रत्युत्तर बन जाता है, उसी दिन जीवन में आत्मवानता पैदा होती है। और ऐसा आत्मवान व्यक्ति ही परमात्मा को पाने में किसी दिन समर्थ हो पाता है।
शेष कल।
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