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हूं। मुझे पता नहीं परमात्मा है या नहीं, मुझे पता नहीं कि आत्मा है या नहीं। तो ज्यादा से ज्यादा मैं 'यदि' की भाषा में बोल सकता हूं। 'यदि परमात्मा हो तो क्षमा कर दे इस बड रसल को, यदि बट्रेंड रसल हो।'
यह आदमी मृत्यु के प्रति भी रिएक्शन नहीं कर रहा है। यह आदमी मृत्यु के प्रति भी रिस्पांस कर रहा है। यह आदमी मृत्यु के क्षण में भी घबड़ा नहीं गया है। ___ एक मित्र हैं, बड़े पुराने विचारक हैं, बड़े पंडित हैं, कृष्णमूर्ति को निरंतर सुनते हैं। तो मुझसे एक दफा उन्होंने कहा कि अब तो मेरे मन से सब हट गया-राम, ॐ, मंत्र, सब हट गए। मैंने पूछा, पक्के हट गए हैं? उन्होंने कहा, बिलकुल हट गए हैं। अब तो मेरे मन में कोई जगह नहीं रही। न मैं भजन करता हूं, न मैं भगवान का नाम लेता हूं, क्योंकि उसका कोई नाम नहीं है। उसका कोई भजन नहीं है। मैं कृष्णमूर्ति को सुनता हूं। मुझे बात बिलकुल समझ में आ गई। मैंने कहा, आ गयी तो बड़ा अच्छा है। लेकिन आप इतने जोर से कह रहे हैं कि बिलकुल समझ में आ गई, तो भीतर कहीं न कहीं संदेह होना चाहिए। फिर भी मैंने कहा, अच्छा है कि आ गई।
दो-एक महीने बाद उनको हृदय का दौरा हुआ। उनके लड़के ने मुझे खबर भेजी कि वे बहुत घबड़ा रहे हैं, आप आइए। मैं गया। वे आंख बंद किये हुए हैं और राम-राम, राम-राम कहे चले जा रहे हैं। ___मैंने उन्हें हिलाया, और कहा कि क्या कर रहे हो? उन्होंने आंख खोली और कहा, पता नहीं, मैं भी थोड़ा सोचा, लेकिन जैसे लगा कि मौत करीब है, मैंने कहा, जाने दो कृष्णमूर्ति को, मौत करीब है और फिर तो मेरे बस में न रहा। फिर तो मेरे मुंह से निकलने ही लगा। अब यह मैं कह नहीं रहा हूं, यह हो रहा है। यह सिर्फ हो रहा है। घबराहट में राम-राम निकल रहा है। ___ अब यह रिएक्शन है। अब यह आदमी भगवान को माननेवाला है, लेकिन रिएक्शन कर रहा है। और बर्टेड रसल भगवान को माननेवाला नहीं है, लेकिन रिस्पांस कर रहा है।
और मैं मानता हूं, बर्टेड रसल किसी दिन भगवान को पा सकता है। लेकिन यह आदमी भगवान को किसी दिन नहीं पा सकता है। क्योंकि जो व्यक्ति सचेतन व्यवहार कर रहा है जीवन के प्रति वह आदमी आत्मवान होने का सबूत दे रहा है।
बर्टेड रसल का यह वक्तव्य कि यदि कोई आत्मा हो, और हे परमात्मा, यदि कोई परमात्मा हो, तो माफ कर देना, बड़ा सचेतन वक्तव्य है। बड़ा आत्मवान वक्तव्य है। आत्मा के संबंध में भी ‘यदि' लगाने वाला व्यक्ति, मरते क्षण में परमात्मा के संबंध में भी 'यदि' लगानेवाला व्यक्ति, अपने आत्मवान होने की पूरी सूचना दे रहा है। भयभीत नहीं है। मृत्यु से घबड़ा नहीं गया है। जो उसकी चेतना कह रही है वह उसके साथ पूरा-पूरा खड़ा है। यह प्रतिसंवेदन है। यह प्रत्युत्तर है, लेकिन यह सचेतन है। यांत्रिक प्रत्युत्तर सचेतन नहीं है, जड़ है।
इतना फर्क अगर स्मरण रहे तो रिएक्शंस से बचना, रिस्पांस की ओर बढ़ना है;
संन्यास (प्रश्नोत्तर) 229
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