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ओशो, आपने कहा है कि असभ्य आदमी चेहरे प्रयत्नपूर्वक बदल पाता है, लेकिन सभ्य, शिक्षित आदमी सहजता से चेहरे बदल पाता है। अर्थात चेहरे बदलने की सहजता सभ्यता का वरदान है। इस चेहरे की बदलाहट के संदर्भ में मैं पूछना चाहता हूं कि रिएक्शंस और रिस्पांस में आप क्या सूक्ष्म भेद करते हैं? रिएक्शंस से मुक्ति और रिस्पांस की उपलब्धि के क्या सूत्र होंगे, इसे संक्षेप में समझाएं।
साधारणतः हम रिएक्शंस ही करते हैं, प्रतिक्रियाएं ही करते हैं, प्रति-कर्म ही करते हैं। कोई गाली देता है तो हमारे भीतर गाली पैदा हो जाती है। यह गाली हम नहीं देते। कोई हमसे दिला लेता है। ऐसे हम गुलाम हो जाते हैं। अगर आपसे मुझे गाली दिलानी है तो मैं दिला लूंगा। एक गाली भर देने की जरूरत है। आपको गाली देनी पड़ेगी। अगर आपमें मुझे क्रोध पैदा करना है, एक जरा से धक्के की जरूरत है, आप क्रोधी हो जाएंगे।
तो मैं आप में क्रोध पैदा करा दूंगा तो आप गुलाम हो गये। जो चीज हममें दूसरे पैदा करवा लेते हैं वही हमारी गुलामियां हैं। रिएक्शन हमारी गुलामी है, और हममें सब तरह के रिएक्शन पैदा करवा लिये जाते हैं। कोई आदमी आता है और प्रशंसा करता है, हमारे प्राण पुलकित हो जाते हैं। कोई आदमी आता है, निंदा करता है, और हम एकदम उदास, गहन अंधेरी रात में खो जाते हैं। कोई आदमी आता है और कहता है, आप तो बहुत सुंदर हैं, और हम एकदम सुंदर हो जाते हैं। और कोई कह देता है, सुंदर जरा भी नहीं, तो हम एकदम कुरूप हो जाते हैं। हम कुछ भी नहीं हैं, पब्लिक ओपिनियन हैं। लोग क्या कहते हैं, वही हम हैं।
इसलिए हम सब अखबार की कटिंग काट-काट कर अपने पास रखते हैं कि कौन हमारे बाबत क्या कह रहा है। उन सबको हम अपने कपड़ों पर नहीं लगाते हैं, यही बड़ी कृपा है। पूरे समय हम सिर्फ रिएक्ट कर रहे हैं। कौन क्या कहता है, कौन क्या करवाता है, हम वही कर लेते हैं। हम व्यक्ति नहीं हैं। व्यक्ति तो हम उसी दिन शरू होते हैं जिस दिन रिस्पांस शरू होता है। ___ रिस्पांस प्रतिसंवेदन है। प्रतिसंवेदन और प्रतिक्रिया में बड़ा फर्क है। समझें कि एक आदमी ने गाली दी आपको, तो प्रतिक्रिया में तो हमेशा गाली ही पैदा होगी आपसे। लेकिन प्रतिसंवेदन में दया भी आ सकती है। एक आदमी ने गाली दी आपको, यह भी दिखाई पड़ सकता है: बेचारा, पता नहीं किस मुसीबत में गाली दे रहा है तब प्रतिसंवेदन है, तब रिस्पांस है। तब आपने उसकी गाली के द्वारा व्यवहार नहीं किया। आप अपना व्यवहार जारी रख रहे हैं। आपके भीतर जो व्यवहार पैदा हो रहा है वह उसकी गाली का यांत्रिक परिणाम नहीं है, चेतनगत प्रत्युत्तर है। इन दोनों में बड़ा फर्क है।
एक बिजली का बटन हम दबाते हैं, पंखा चल पड़ता है। पंखा सोचता नहीं, चलूं, न चलूं। बटन दबायी तो चलता है, फिर बटन दबायी तो बंद हो जाता है। आपको गाली दी-बटन दबायी, आप क्रोधित हो गए। आपकी प्रशंसा की-बटन दबायी, क्रोध चला
संन्यास (प्रश्नोत्तर) 227
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