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________________ है ? गीता सीख लेते हैं, वह आसान है। गीता को कंठस्थ कर लेना बच्चों का काम है और जितनी कम बुद्धि का आदमी हो उतनी जल्दी कंठस्थ हो जाती है। सीखें कि सम्यक सीखना, राइट लर्निंग क्या है ? कुछ और भी सीखना है। वह जो हैपनिंग है, वह जो घटना घटी है, वह सीखना है। यह जो कृष्ण नाम की घटना घट गई है, यह सीखनी है। यह जो कृष्ण के मुंह से निकला है, यह नहीं सीखना है। यह जो कृष्ण पहने हुए हैं, यह नहीं सीखना है। नहीं, कृष्ण के भीतर जो बीज फूटा और अंकुरित होकर वृक्ष बन गया है तो मेरा बीज भी फूट सकता है, यह सीखना है। इस बीज को तोड़ने की आकांक्षा सीखनी है, अभीप्सा सीखनी है। इस बीज को तोड़ने का पागलपन सीखना है। इस बीज को तोड़ने की जिद सीखनी है। इस बीज को तोड़ने का संकल्प सीखना है। वह कृष्ण से सीख लें। वह क्राइस्ट से भी सीखा जा सकता है। वह बुद्ध से भी सीखा जा सकता है। वह अपने चारों तरफ हजार-हजार मार्गों से सीखा जा सकता है । और जो सीखने को उत्सुक है उसे तो वृक्ष पर खिलते हुए फूल से भी याद आती है उसी की ! आकाश में चमकते हुए खयाल आता है उसी का ! जमीन से फूटते हुए झरने में भी स्मृति आती है उसी की। सबसे उसी की याद ! सुना है मैंने कि एक सूफी फकीर एक गांव से गुजर रहा है। सांझ है और एक बच्चा मंदिर में दीया चढ़ाने जा रहा है। उसने उसे रोका और पूछा, इस दीये में ज्योति कहां से आई? तूने ही जलाया है दीया ? तो उस बच्चे ने कहा, जलाया तो मैंने, लेकिन ज्योति कहां से आई यह पता नहीं। और तभी बच्चे ने दीया फूंक कर बुझा दिया और कहा कि आपके सामने ज्योति चली गई। अब आप मुझे बता दें कहां चली गई ज्योति ? आपके सामने ही गई है न? तब मैं भी बता सकूंगा कि कहां से आई थी, मेरे ही सामने आई थी। वह फकीर उस बच्चे के पैरों पर गिर पड़ा और उसने कहा कि आज से गलत सवाल न पूछूंगा। क्योंकि जिसका जवाब मैं नहीं दे सकता वैसा सवाल पूछना मूर्खता है। तू मुझे माफ कर दे, तू मुझे क्षमा कर दे, और मुझे भी तो पता नहीं है कि ज्योति कहां चली जाती है ! छोड़ें इस दीये को, उस फकीर कहा। तू अच्छी याद दिला दी। मुझे यह भी तो पता नहीं है कि मेरे दीये में जो ज्योति जल रही है, वह कहां से आती है। और जब मेरे दीये में बुझ जाएगी तब कहां चली जाएगी। पहले अपने दीये का पता लगा लूं फिर इस मिट्टी के दीये की खोज करूंगा। अब यह जो आदमी है उसने सीखा कुछ । ही हैज लर्ड समथिंग, इसने कुछ सीखा। इसने इस घटना से कुछ सीखा। एक झेन फकीर के आश्रम में एक बूढ़ी औरत बहुत दिन से रुकी है और वह कहती है कि नहीं, घटना नहीं घट रही है। कुछ और सिखाओ, कुछ और सिखाओ। वह बड़े-बड़े सिद्धांत सीख गई, शास्त्र सीख गई है, लेकिन घटना नहीं घट रही है। वह कहती है, और सिखाओ। अब वह फकीर कहता है, तू सीखती ही नहीं । सब तरफ वही सिखाया जा रहा है। फिर एक दिन वह वृक्ष के नीचे बैठी और एक सूखा पत्ता वृक्ष से नीचे गिर गया। बस, संन्यास (प्रश्नोत्तर) Jain Education International For Personal & Private Use Only 225 www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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