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भी परमात्मा का संदेश लाये, वह लड़ता ही रहे; और जो भूलें पीछे हो गई हैं आदमी से, उनके खिलाफ चलता ही रहे। पक्का नहीं कहा जा सकता कि आदमी मानेगा, क्योंकि कुछ भी पक्का नहीं कहा जा सकता, लेकिन कोशिश जारी रहनी चाहिए। ___ एक बात अंत में इस प्रश्न के संबंध में वह यह है कि कितनी ही भूल-चूक आदमी ने की हो और लोगों ने मूसा की बांसुरी पर कितना ही सोना चढ़ा दिया हो, अगर हम आज भी सोने को उखाड़ें तो मूसा की बांसुरी भीतर छिपी मिल सकती है। अनुयायियों ने महावीर पर जो-जो थोपा है, उसे अगर हम उतार दें, उनके सब आलेपन... बुद्ध के माननेवालों ने जो-जो पहनाया है, वह सारे वस्त्र हम अलग कर दें, तो भीतर वह सत्य आज भी वैसा ही मौजूद है।
लेकिन बुद्ध के आरोपण अलग करने जाइए-पच्चीस सौ साल पहले बुद्ध हुए-जरूरत क्या है? महावीर के आरोपण अलग करने जाइए, जरूरत क्या है? इतनी मेहनत से तो आप अपने भीतर के बुद्ध, अपने भीतर के महावीर के आरोपण अलग कर ले सकते हैं।
और ध्यान रहे, जब तक मैं अपने भीतर महावीर को न पा लूं तब तक मैं बाहर किसी महावीर को पहचान नहीं सकता हूं। जब तक मैं अपने भीतर कृष्ण को न पा लूं तब तक कोई कृष्ण मेरे लिए सार्थक नहीं हो सकते। जब तक मेरे भीतर बुद्ध प्रकट न हो जायें तब तक बुद्ध का एक भी शब्द मेरे लिए मेरी भाषा का शब्द नहीं है। अपने को ही हम खोज लें, तो हम सबको खोज लेते हैं।
ओशो, आपने कहा है कि चेहरे चुराना, दूसरे जैसा बनने का प्रयास करना, शिष्य और अनुयायी बनाना सूक्ष्म चोरी है। तब दूसरे व्यक्तियों से प्रेरणा पाना, साधना सीखना, अनुभवी, जाग्रत लोगों के पास जाना, यह सब भी क्या चोरियां हैं? यदि ये सब चोरियां हैं तो सम्यक शिक्षा का क्या रूप होगा? कपया इसे समझायें।
जो जानते हैं उनके पास जायें, लेकिन जो वे जानते हैं उसे मान मत लेना। उसे खोजें। जो वे जानते हैं उसे विश्वास न बना लें, उसे ही जिज्ञासा बनायें। जो वे जानते हैं उसके प्रति अंधे होकर मुट्ठी न बांध लें, उसके प्रति आंख खोलें, टटोलें। प्रेरणा का अर्थ दूसरे को स्वीकार कर लेना नहीं है। प्रेरणा का अर्थ दूसरे की चुनौती स्वीकार करना है, चैलेंज। __महावीर के पास जायें तो प्रेरणा का अर्थ यह नहीं है कि महावीर जैसे होने में लग जायें। महावीर के पास जाकर प्रेरणा का यह अर्थ है कि अगर इस महावीर के भीतर यह प्रकाश पैदा हो सका तो मेरे भीतर क्यों पैदा नहीं हो सकता? यह चुनौती है!
अंग्रेजी में शब्द है, इंस्पिरेशन। वह शब्द बहुत कीमती है। उसमें 'इन' शब्द पर ध्यान देना जरूरी है-इंस्पिरेशन। लेकिन इंस्पिरेशन लेते हम सदा दूसरे से हैं। तब तो शब्द बड़ा
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ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
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