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________________ इसका सिर्फ एक ही उपाय है कि काश, मूसा के आसपास प्रेम करनेवाले लोगों को हम कहें कि तुम कृपा करके बांसुरी की पूजा मत करो, बांसुरी बजाना सीखो। अगर मूसा के आसपास के लोग बांसुरी बजाना सीखें-हो सकता है मूसा जैसी न बजा पायें, लेकिन बांसुरी बजाना भी सीख लें तो एक बात तो कम से कम पक्की है कि बांसुरी पर सोना नहीं चढ़ेगा, हीरेजवाहरात नहीं चढ़ाए जाएंगे। क्योंकि तब वे इतना कह सकेंगे कि बांसुरी की पूजा बांसुरी की नहीं है, उससे पैदा होनेवाले संगीत की पूजा है। और वह संगीत तभी पैदा होता है जब बांसुरी पोली हो। उसमें सोना भर दिया है तो फिर संगीत पैदा नहीं होता है। महावीर और बुद्ध की पूजा न की जाये, महावीर और बुद्ध के जीवन में जो घटित हुआ है, महावीर और बद्ध के जीवन की जो ऊंचाइयां प्रकट हई हैं, जिन शिखरों को, जिन गौरीशंकरों को उन्होंने छुआ है, अगर हम भी छोटे-मोटे टीलों की भी खोज में निकल जायें तो शायद विकृति न हो। लेकिन हम पूजा में लग जाते हैं। पूजा विकृति बन जाती है। जिसको हम पूजते हैं उसको हम बिगाड़ते हैं। जिसे हम पूजते हैं उसे हम नष्ट करते हैं। क्योंकि धीरे-धीरे हम जिसको पूजते हैं उसको अपनी शक्ल में गढ़ लेते हैं। तभी तो हम पूज पायेंगे, नहीं तो पूज नहीं पायेंगे। हम कहानियां गढ़ते हैं उसके आसपास जो हमारी होती हैं। हम उसे पूजा-योग्य बनाते चले जाते हैं। उसका व्यक्तित्व धीरे-धीरे सिर्फ मुर्दा राख रह जाता है। __मूसा की बांसुरी करीब-करीब सारी दुनिया में सब लोगों के पास है। लेकिन उसमें से कोई स्वर नहीं निकलते हैं। लेकिन क्या किया जा सकता है, आज तक ऐसा हुआ है। शायद आगे भी ऐसा ही होगा। दुर्भाग्यपूर्ण है! होना नहीं चाहिए। लेकिन हमारी आदतें हैं, हमारी मजबूरियां हैं। हम वही करते रहते हैं, लेकिन फिर भी सचेत करने की कोशिश निरंतर की जाती रही है। बुद्ध लोगों से कहते हैं कि मेरी पूजा मत करना, महावीर कहते हैं कि तुम स्वयं भगवान हो। जो आदमी दूसरों से कह रहा है कि तुम स्वयं भगवान हो, वह आदमी कह रहा है कि मेरी पूजा मत करो। वह आदमी यह कह रहा है कि तुम जिसकी पूजा कर रहे हो वह तुम स्वयं हो। अब तुम्हें किसी और की पूजा की कोई भी जरूरत नहीं है। महावीर कहते हैं, अशरण हो जाओ, सब शरण छोड़ दो, क्योंकि तुम किसकी शरण जा रहे हो? तुम खुद वही हो जिसकी खोज चल रही है। लेकिन हम महावीर की शरण चले जाते हैं। हम कहते हैं, आपने अशरण का मार्ग बताया, बड़ी कृपा की। कम से कम आपके चरणों में तो हमें आ जाने दो। बद्ध कहते हैं. पजा मत करना। तो हम कहते हैं. किसी की पजा न करेंगे, लेकिन तुमने तो इतनी ऊंची बात कही, तुम्हारी तो कम से कम करने दो। तो हम बुद्ध की पूजा जारी कर देते हैं। __ आदमी की बुनियादी भूलें कारण हैं। अभी तक आदमी जीतता रहा, महावीर-बुद्ध हारते रहे। पता नहीं आगे इस कहानी में फर्क पड़ेगा या नहीं पड़ेगा, कोशिश जारी रहनी चाहिए। कोशिश जारी रहनी चाहिए कि अब आगे बुद्ध और महावीर न हार पायें, अब आगे जो व्यक्ति संन्यास (प्रश्नोत्तर) 221 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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