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________________ महावीर जैसे व्यक्ति खड़ा करते हैं उन श्रेष्ठ चीजों को, लेकिन बचा नहीं पाते, दुर्भाग्य है। चेष्टा बहुत करते हैं कि बच जायें चीजें अपने शुद्धतम रूप में, लेकिन नहीं बच पातीं। उसका कारण है। महावीर अस्सी साल जिंदा रहते हैं, फिर विदा हो जाते हैं। जो दे जाते हैं वह हमारे हाथ में पड़ता है, जो महावीर नहीं हैं, जिनको उस चेतना की स्थिति से कोई भी संबंध नहीं है। फिर तो हम जो करेंगे वह करेंगे। मैंने सुना है कि मोज़ेज़ के पास, मूसा के पास एक बांसुरी थी और उस बांसुरी को कभीकभी पहाड़ पर बैठकर वे बजाते थे। राह चलते गड़रिए ठहर जाते थे। भेड़ें रुक जाती थीं, जंगल के हिरण इकट्ठे हो जाते थे, पक्षी मौन हो जाते थे, पक्षी उन्हें घेर लेते थे। फिर मोज़ेज़ मर गये, तो जिन गड़रियों ने उस दिव्य बांसुरी के स्वर सुने थे, उन्होंने उस बांसुरी को वृक्ष के नीचे रखकर पूजा करनी शुरू कर दी। लेकिन वह बांस की पोंगरी थी। एक-दो पीढ़ी भी नहीं बीत पायी कि लोगों ने कहा कि इस कोरी बांस की पोंगरी में रखा क्या है, इसमें कुछ पूजा-योग्य भी तो होना चाहिए! तो बड़े-बूढ़ों ने कहा, यह बात ठीक है। तो उन्होंने उस बांसुरी के ऊपर सोने का प्लास्तर चढ़ा दिया, ताकि पूजा-योग्य हो जाये। फिर जब वह सोने की हो गई तो लोगों को लगा कि हां, अब वह बांस की पोंगरी नहीं है, सोने की बांसुरी है। तो वे सोने की बांसुरी की पूजा करते रहे। ___ एक-दो पीढ़ी बाद लोगों ने कहा कि यह क्या कोरा सोना लगा रखा है! कुछ लोग हीरेजवाहरात खरीद लाये, उन्होंने हीरे-जवाहरात लगा दिए उस पर। लेकिन अब उसमें कहीं से भी फूंकें, उसमें कोई स्वर न उठते थे। फिर जब कोई संगीतज्ञ वहां से गुजरा तो उसने पूछा, मैंने सुना है कि यहां मूसा की बांसुरी की पूजा होती है। मैं उस बांसुरी के दर्शन करना चाहता हूं। जब वह गया देखने तो वहां बांसुरी थी ही नहीं। उस पर सोने का प्लास्तर चढ़ गया था। प्लास्तर के ऊपर हीरे-जवाहरात लग गए थे। उसने दोनों तरफ से फूंका। उसमें कोई छेद ही न थे जहां से फूंकी जा सके। महावीर की बांसुरी भी ऐसी ही हो जाती है, बुद्ध की बांसुरी भी ऐसी ही हो जाती है, जीसस की बांसुरी के साथ भी हम यही करते हैं। जिनके हाथ में पड़ती है बात, वे सब-कुछ विकृत कर देते हैं। इस विकृति का जिम्मा महावीर या बुद्ध के ऊपर या कृष्ण के ऊपर नहीं है। इस विकृति का जिम्मा हमारे ऊपर है। और इसलिए अगर महावीर जैसा व्यक्ति आज फिर लौट आये तो उसे महावीर के ही खिलाफ बोलना पड़ता है। बोलना पड़ता है इसलिए कि आपने महावीर की जो शक्ल बना दी है, अब उस शक्ल को गिराना जरूरी हो जाता है। अगर कोई संगीतज्ञ लौट आये तो उसे उसी बांसुरी के खिलाफ बोलना पड़ेगा और कहना पड़ेगा, यह बांसुरी नहीं है। अगर जीसस वापस लौट आयें तो उन्हें जीसस के ही खिलाफ बोलना पडेगा। क्योंकि दो हजार साल में हमने जो शक्ल कर दी है. वह जीसस भी नहीं पहचान पायेंगे कि कभी मैं आया था, यह मेरी शक्ल थी! आदमी के हाथ में पड़ कर सब बिगड़ जाता है। लेकिन इसका कोई उपाय नहीं है। 220 ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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