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________________ स्वरध्वनियां उस दूसरे सोए हुए सितार के तारों को भी छेड़ देती हैं और वह भी झनझना उठता है। अगर दस ध्यान करनेवाले इकट्ठे बैठकर ध्यान करते हैं और उनमें से एक भी बहुत गहराई में जा सकता है, तो उससे उठी हुई तरंगें, उससे उठी हुई वाइब्रेशंस दूसरों के सोए हुए ध्यान के तारों को भी झनझना देती हैं। इसलिए सामूहिक ध्यान का अपना उपयोग है, सामूहिक साधना का अपना उपयोग है, सामूहिक प्रार्थना का अपना उपयोग है। और हम जो बहुत कमजोर लोग हैं उनके लिए समूह अर्थपूर्ण बन जाता है, बहुत अर्थपूर्ण बन जाता है। महावीर ने जिन संघों की बात की है वे संघ समान खोज करनेवाले लोगों के मिलन स्थल हैं। उस मिलन में किसी के प्रति पक्ष या विपक्ष से कोई प्रयोजन नहीं है। उस मिलन में प्रेम के अतिरिक्त और कोई कारण नहीं है। और मैं मानता हैं कि ऐसे प्रेम करनेवाले लोगों को जरूर ही इकट्ठे होते रहना चाहिए। ऐसे प्रेम करनेवाले लोग बुरी बातों के लिए तो इकट्ठे हो रहे हैं। चोर तो इकट्ठे हो जाते हैं, साधुओं का इकट्ठा होना बहुत मुश्किल होता है। धूर्त तो इकट्ठे हो जाते हैं, साधुओं का इकट्ठा होना बहुत मुश्किल मालूम होता है। लेकिन धूर्तों का संघ किसी के पक्ष में और किसी के खिलाफ होता है। साधुओं का संघ किसी के पक्ष में या किसी के खिलाफ नहीं होता, सिर्फ मिलन के आनंद के लिए होता है। ___ और दुनिया में अगर धूर्त ही इकट्ठे होते रहें तो धूर्तों के पास ज्यादा शक्ति इकट्ठी हो जाती हो तो इसमें आश्चर्य नहीं है। साधुओं के भी कहीं इकट्ठे होने के उपाय होने चाहिए। गांव में बुरे लोग इकट्ठे होकर सब तरह का बुरा संवेदन पैदा करते रहे हैं, बुरे लोग इकट्ठे होकर होटलों में, क्लबों में सब तरफ, इस गांव की तरंगों को दूषित और अंधकारपूर्ण करते रहे हैं, और अच्छे लोगों के लिए मिलने की कोई जगह न हो जहां से वे भी सत्य के, जहां से वे भी प्रेम के संवेदन गांव में पैदा कर सकें, तो इस दुनिया का बहुत अहित होता है। मंदिर, मस्जिद, चर्च कभी ऐसे ही मिलनेवाले लोगों के मिलन-स्थल थे-अब नहीं हैं जिनमें गांव की शुद्ध तरंगें भी पैदा होती थीं और जहां से परमात्मा की यात्रा पर भी पुकार आती थी। आज भी मंदिर के घंटे हम बजाते रहते हैं, लेकिन किसी को वे सुनायी नहीं पड़ते। कभी वे पुकार थे परमात्मा की, कभी वे स्मरण के स्रोत थे, कभी वे खबरें थीं कि उठो! कोई और भी है खोज, उसकी भी याद उनसे आती थी। अब भी मस्जिद से अजान दी जाती है, लेकिन लोगों की सिर्फ सुबह की नींद खराब होती है और कुछ भी नहीं होता। देनेवाला भी सिर्फ प्रोफेशनल है, एक काम है कि वह सुबह अजान दे देता है। वह भी सोचता है कि आज सुबह बड़ी जल्दी हो गई मालूम होता है। आज सब बेमानी हो गया है। __महावीर ने जो मिलन की कामना की थी वह अर्थपूर्ण है, वह संघ नहीं है आज की भाषा में। असाधु की भाषा में संघ कुछ और अर्थ रखता है, साधु की भाषा में कुछ और अर्थ रखता है। इतना खयाल में आ जाए तो कठिनाई नहीं रह जाएगी। लेकिन जितनी भी श्रेष्ठ चीजें हैं, संन्यास (प्रश्नोत्तर) 219 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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